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असम के टी एस्टेट्स में हमेशा 'बड़े साहबों' का रुतबा रहा है, वही इन एस्टेट्स के मुखिया रहे हैं। लेकिन इन दिनों यहां एक मैडम की तैनाती हुर्इ है, जो चाय बागानों की देख रेख कर रही हैं। बता दें कि 1830 में अंग्रेजों द्वारा बनाए गए इन बागानों के इतिहास में पहली बार यहां किसी महिला की मैनेजर के तौर पर तैनाती हुई है।
बड़ा मैडम कहकर बुलाते हैं लोग
मंजू बरुआ असम के डिब्रूगढ़ में एपीजे टी के हिलिका टी एस्टेट की मैनेजर हैं। 43 वर्षीय बरुआ ने वेलफेयर ऑफिसर के तौर पर अपने करियर की शुरुआत की थी। मंजू ने बताया, 'अक्सर लोग मुझे बड़ा मैडम कहकर बुलाते हैं, यह बड़ा साहब की तरह ही है। चाय के बागानों में किसी बड़े अधिकारी को ऐसे ही बुलाते हैं। कई बार कुछ वर्कर मुझे मैडम की जगह सर भी बोलते हैं, मुझे अच्छा लगता है यह।'

परंपरागत बदलाव
बरुआ काम के दौरान करीब 633 हेक्टेयर के चाय बागान में अपनी बाइक से घूमकर ड्यूटी करती हैं। उन्होंने बताया, 'एक चाय बागान में महिला मैनेजर का होना परंपरागत तरीकों में बदलाव जैसा तो है, लेकिन यह एक अच्छा बदलाव है।'
महिला आैर पुरुष के लिए एक जैसी है चुनौती
एक चाय के बागान में ज्यादातर काम बाहर का होता है और उसके लिए शारीरिक क्षमताओं का होना जरूरी है। उन्होंने कहा, 'यहां पुरुषों से ज्यादा महिला वर्कर काम करती हैं। चाय उद्योग में लेबर का बहुत महत्व है, इसलिए चाहे महिला हो या पुरुष दोनों के लिए चुनौती एक जैसी है।' टी बोर्ड ऑफ इंडिया के एक अधिकारी ने बताया कि इन चाय के बागानों में इससे पहले महिलाएं वरिष्ठ असिस्टेंट मैनेजर और वेलफेयर ऑफिसर तो रही हैं, लेकिन बरुआ से पहले कोई मैनेजर के पद तक नहीं पहुंचा था।
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