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2019 में दुनिया में कोरोना वायरस ने दस्तक दी है जिससे कई दिनों कर लोग घर के बाहर कदम रखने से कतराने लगे हैं। यह सिलसिला अभी भी जारी है। बता दें कि इसी तरह से साल 1918 में स्पैनिश फ्लू से दुनिया में महामारी फैली थी। जिसमें 5 करोड़ लोगों ने अपनी जान गंवाई थी। उस दौरान लोग कई महीनों तक अपने घरों में कैद रहे थे। 1918 का साल और 2019-20 का साल भी कुछ इसी तरह से गुजरा है। कोरोना वायरस महामारी के कारण देशों में लॉकडाउन रहा और लोग कई सप्ताह कर अपने घरों में ही कैद रहे।
कोरोना से अभी तक 7 करोड़ से अधिक लोग संक्रमित चुके हैं और करीब 16 लाख से अधिक लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। हैरानी की बात तो यह है कि दुनिया विकास की सीढ़ियों पर हैं लेकिन हाई टेक होने के बावजूद भी कोरोना को खत्म करने की वैक्सीन अभी तक नहीं बना पाई है। इन महामारियों को देखते हुए वैज्ञानिकों का कहना है कि अभी धरती पर इंसानों को अभी सबसे बुरा वक्त देखना बाकी है। खतरनाक बात तो यह है कि एक समय ऐसा भी था जब इंसान एक दो दिन नहीं बल्कि 18 महीने तक जमीन से आसमान नहीं देख पाए थे।
बता दें कि हार्वर्ड के मध्यकालीन इतिहासकार और पुरातत्वविद् माइकल मैककॉर्मिक ने बताया कि साल 536 ईस्वी में रहस्यमयी धुंध ने धरती के एक बड़े हिस्से को अपनी चपेट में ले लिया था। इसके कारण 18 महीनों तक धरती से आसमान नहीं देख पाए थे। धुंध के कारण धरती का तापमान गिर गया था। जिससे की सूर्य कि किरणें धरती पर नहीं आ पा रही थी। वही एक समय था जब सूर्य पूर्णिमा की रात में चमकते चांद की तरह रोशनी दे रहा था। वर्तमान में वैसे तो इस तरह की सर्दियां नहीं है लेकिन धरती पर कभी भी कुछ भी हो सकता है।
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