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नई दिल्ली। अभी तक आपने एक से बढ़कर और अनोखा मंदिर देखे होंगे जहां अलग—अलग देवी देवताओं की पूजा की जाती है। लेकिन इस दुनिया में एक ऐसा मंदिर भी जहां कुतिया महारानी की पूजा की जाती है। जी हां, यह कुतिया महारानी का यह मंदिर उत्तर प्रदेश के झांसी जिले के मऊरानीपुर के गांव रेवन और ककवारा गांवों के बीच लिंक रोड पर स्थित है। यहां पर कुतिया की मूर्ती है गांव वाले अन्न-जल आदि चढ़ाने आते हैं। हालांकि, यह कोई मंदिर नहीं बल्कि एक ओटला है जिसके पीछे की एक कहानी है। यह तो लोगों की आस्था, भावना और पश्चाताप का एक केंद्र एक चबूतरा है।
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मंदिरनुमा मठ
झांसी के मऊरानीपुर के गांव रेवन और ककवारा के बीच लगभग 3 किमी की दूरी है। इन दोनों गांवों को आपस में जोड़ने वाले लिंक रोड के मध्य सड़क किनारे एक चबूतरा बना हुआ है। इस चबूतरे पर एक छोटा सा मंदिरनुमा मठ बना हुआ है। इस मठ में काली कुतिया की मूर्ति स्थापित है। इस मूर्ति के बाहर लोहे की जालियां लगी हैं, ताकि कोई इस मूर्ति को नुकसान न पहुंचा सके।
महिलाएं प्रतिदिन जल चढ़ाने आती हैं
इस मंदिर पर आसपास के गांवों की महिलाएं रोज जल चढ़ाने आती हैं और यहां पूजा-अर्चना कर अपने परिवार की खुशहाली के लिए आशीर्वाद मांगती हैं। यह छोटा सा मंदिर सुनसान सड़क पर बना है, मगर यहां के लोगों की कुतिया महारानी के प्रति अपार श्रद्धा है। ग्रामीणों के मुताबिक, कुतिया का यह मंदिर उनकी आस्था का केंद्र है।
ये चबूतरे के बनने की कहानी
कहा जाता है कि दोनों गांवों में जब भी किसी भी आयोजन में होने वाला खाना यानी पंगत होती थी, तो यह कुतिया वहां पहुंचकर पंगत खाती थी। उस समय पंगत शुरू होने से पहले बुंदेलखंडी लोक संगीत का एक वाद्य यंत्र रमतूला बजाया जाता था। उसकी आवाज सुनकर उस आयोजन में आमंत्रित सभी लोग पंगत खाने पहुंच जाते थे। एकबार ककवारा और रेवन दोनों गांवों में कार्यक्रम था। दोनों जगह पंगत होनी थी। कुतिया को भी दोनों जगह जाना था, लेकिन वह उस दिन कुछ बीमार थी।
पंगत खत्म हो गई
ककवारा का रमतूला जैसे ही बजा, वह ककवारा की ओर दौड़ने लगी। जब तक वह ककवारा पहुंची, वहां पंगत खत्म हो चुकी थी। वह थक कर चूर हो गई। उसने सोचा कुछ आराम कर लूं। वह वहीं लेट गई। इसी दौरान रेवन गांव का रमतूला बजने लगा। कुतिया ने सोचा कि यदि देर हो गई तो रेवन की पंगत भी नहीं मिलेगी और उसे भूखा ही रहना पड़ेगा। यह सोचकर वह रेवन की ओर दौड़ गई। जब तक वह रेवन पहुंची, वहां की भी पंगत खत्म हो गई।
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कुतिया की हो गई थी मौत
दोनों ओर से खाना न मिलने और बीमारी की वजह से वह हताश होकर वापस चल पड़ी और रेवन व ककवारा के बीच एक स्थान पर सड़क किनारे गिरकर बेहोश हो गई और कुछ देर बाद उसकी मौत हो गई। सुबह जब गांव वालों को इसकी जानकारी हुई तो उन्होंने कुतिया के शव को वहीं पर दफना दिया और उसी स्थान पर इस चबूतरे का निर्माण करा दिया। तब से यह कुतिया महारानी मां के मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है।
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