/fit-in/640x480/dnn-upload/images/2021/05/18/s-1621331288.jpg)
सरकार के इस फैसले से जूट सेक्टर में काम करने वाले करीब 3.7 लाख कामगारों और लाखों किसानों को फायदा होगा। इस फैसले से खासकर पश्चिम बंगाल, बिहार, ओडिशा, असम, आंध्र प्रदेश, मेघालय और त्रिपुरा में रहने वाले किसानों को मदद मिलेगी। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, सरकार ने 100 फीसदी अनाज की पैकेजिंग जूट के बैग में ही करने की डेडलाइन को छह महीने के लिए बढ़ा दिया है।
आपको बता दें कि जूट उद्योग मुख्य रूप से सरकारी क्षेत्र पर ही निर्भर है, जो खाद्यान्न की पैकिंग के लिए हर साल 6500 करोड़ रुपये से भी अधिक कीमत की जूट बोरियां खरीदता है। ऐसा इसलिए किया जाता है, ताकि जूट उद्योग के लिए मुख्य मांग निरंतर बनी रही और इसके साथ ही इस क्षेत्र पर निर्भर कामगारों एवं किसानों की आजीविका में आवश्यक सहयोग देना संभव हो सके। इस निर्णय से पश्चिम बंगाल, बिहार, ओडिशा, असम, आंध्र प्रदेश, मेघालय और त्रिपुरा में रहने वाले किसान एवं कामगार लाभान्वित होंगे।
जूट के रेशे बोरे, दरी, तम्बू, तिरपाल, टाट, रस्सियाँ, निम्नकोटि के कपड़े तथा कागज बनाने के काम आता है। पटसन, पाट या पटुआ एक द्विबीजपत्री, रेशेदार पौधा है। इसका तना पतला और बेलनाकार होता है। इसके तने से पत्तियाँ अलग कर पानी में गट्ठर बाँधकर सड़ने के लिए डाल दिया जाता है। इसके बाद रेशे को पौधे से अलग किया जाता है। इसके रेशे बोरे, दरी, तम्बू, तिरपाल, टाट, रस्सियाँ, निम्नकोटि के कपड़े तथा कागज बनाने के काम आता है।
भारत के बंगाल, बिहार, उड़ीसा, असम और उत्तर प्रदेश के कुछ तराई भागों में लगभग 16 लाख एकड़ भूमि में जूट की खेती होती है। उत्पादन का लगभग 67 प्रति शत भारत में ही खपता है। 7 प्रति शत किसानों के पास रह जाता है और शेष ब्रिटेन, बेल्जियम जर्मनी, फ्रांस, इटली और अमेरिका को एक्सपोर्ट होता है।
पश्चिम बंगाल में जूट की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। लेकिन बीते कुछ वर्षों से किसान इस खेती से अलग हट रहे हैं क्योंकि आय का स्रोत घट रहा है। किसानों ने इसके बदले मक्के की खेती शुरू कर दी है और वे इसे बेचकर अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं।
जूट की खेती घटने से जूट से जुड़े उत्पादों में भारी कमी देखी जा रही है। इससे निपटने के लिए वैज्ञानिक तौर पर कुछ विधियां इजाद की गई हैं जिससे कि कम श्रम में जूट उगाई जा सके और किसानों की आमदनी बढ़ सके। इसके लिए एक नई विधि सामने आई है जिसमें बिना जुताई किए जूट की खेती हो रही है। इससे किसानों का श्रम और खेती पर आने वाली लागत घट रही है।
फेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब पर हमसे जुड़ें |