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1971 में बांग्लादेश की आजादी की जंग (Bangladesh freedom war) के समय खून की प्यासी पाकिस्तानी फौज से बचकर अस्थायी सरकार के प्रधानमंत्री रहे ताजुद्दीन अहमद की बेटी सीमिन होसैन रिमी परिवार के साथ जान बचकर किसी तरह त्रिपुरा (Tripura) पहुंची। उस समय रिमी केवल 9 वर्ष की थी जो अब 60 साल की हैं। वो उन दिनों को याद कर शुक्रिया अदा करने के लिए वे फिर त्रिपुरा पहुंची। बांग्लादेश की आजादी और दोनों देशों की दोस्ती की गोल्डन जुबली पर नई दिल्ली में आयोजित कार्यक्रम में भाग लेने के बाद वे त्रिपुरा पहुंचीं।
त्रिपुरा राज्य के सोनामुरा की सीमा बांग्लादेश के कोमिला जिले से मिलती है। यहां युद्ध के दौरान पूर्वी पाकिस्तान से आए हजारों लोगों को शरण दी गई थी। यही नहीं, मुक्ति वाहिनी के लिए प्रशिक्षण शिविर और अस्पताल भी बनाया गया था। अब बांग्लादेश में संसद सदस्य रिमी के पिता की गिनती बांग्लादेश के उदय के प्रमुख नायकों में होती है। उथल-पुथल भरे उन दिनों को याद करती हुई वे कहती हैं, पूर्वी पाकिस्तान से आए लोगों को शरण देने के लिए उन दिनों स्कूल बंद कर दिए गए थे। मुझे यकीन नहीं हो रहा कि मैं उस समय के उपमंडल अधिकारी के बंगले के सामने खड़ी हूं, जिसमें हमने शरण ली थी। मेरे आंसू अब खुशी के हैं।
उन्होंने बताया कि अवामी लीग ने युद्ध (Bangladesh war) में देश के लोगों का नेतृत्व करने के लिए उनके पिता को भारत भेजा तो उनकी मां सईदा जोहुरा बेगम अपने चार छोटे बच्चों के साथ पाकिस्तानी सेना से बचने के लिए छिपती फिर रही थीं। भारत आने के लिए वे लगातार साधन बदल रही थीं। उनके परिवार ने ढाका से बोक्सानगर के बीच की 80 किलोमीटर दूरी सात दिन में पूरी की।
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