गोरखा जनमुक्ति मोर्चा (गोजमुमो) के दूसरे धड़े के नेता विनय तमांग ने दार्जिलिंग पार्वत्य क्षेत्र के गोरखाओं को संवैधानिक न्याय दिए जाने की मांग की है। इसके लिए उन्होंने केंद्र व राज्य सरकार पर निशाना साधा है। सिलीगुड़ी के निकट सुकना हाईस्कूल मैदान में रविवार को एक विशाल जनसभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि गोरखाओं को आजादी देनी होगी। भारत के संविधान के अनुसार, भारतीय गोरखाओं को सम्मानजनक स्थान देना होगा। इसके लिए 1949 की भारत-भूटान मैत्री संधि और 1950 की भारत-नेपाल मैत्री संधि को रद करना होगा। गोरखालैंड के लिए, गोरखाओं की पहचान के लिए, भारत-नेपाल मैत्री संधि व भारत-भूटान मैत्री संधि को रद किया जाना जरूरी है। ये संधियां जब तक रद नहीं हो जातीं, तब तक हम गोरखाओं की पहचान संकट में रहेगी।

मैं केंद्र सरकार और भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेतृत्व, सोनिया गांधी, राहुल गांधी, शरद पवार, फारुख अब्दुल्ला और भारत में सभी शीर्ष राजनीतिक नेतृत्व का आह्वान करता हूं, निवेदन करता हूं, भारत की सुरक्षा के लिए इन संधियों को रद करना होगा। इतिहास को देखना होगा, कलिम्पोंग का इतिहास देखना होगा, सिलीगुड़ी का इतिहास देखना होगा, डूआर्स का इतिहास भी देखना होगा। इतिहास की बातें मैं इसलिए कर रहा हूं कि केंद्र सरकार भी इससे अवगत हो। इस क्षेत्र में कभी भी कोई खतरा आ सकता है, जो दिख रहा है। 1919 में भारत में आठ क्षेत्र, आंशिक बाहरी क्षेत्र (पार्शियली एक्सक्लूडेड एरिया) थे, फिर बाद में ऐसे क्षेत्रों की संख्या और 28 बढ़ गई, कुल 36 ऐसे क्षेत्र हो गए। 1935 से लेकर 1947 यानी भारत की आजादी तक ऐसे अनेक क्षेत्रों ने संवैधानिक न्याय पा लिया। मगर, हम गोरखाओं के दार्जिलिंग पहाड़, तराई व डूआर्स क्षेत्र का संवैधानिक न्याय अभी तक नहीं हुआ। नरेंद्र मोदी सरकार केवल कश्मीर, अरुणाचल और मणिपुर को ही देखती है, उसे दार्जिलिंग पर भी नजर देना होगा। यह भी संधि बाध्य क्षेत्र है। यहां भी संवैधानिक न्याय होना चाहिए। जब तक यहां संवैधानिक न्याय नहीं हो जाता, तब तक हम दूसरे दर्जे के नागरिक ही रहेंगे। इसीलिए संवैधानिक न्याय आवश्यक है।

उन्होंने कहा कि नॉर्थ-ईस्ट में सात राज्य 'सेवेन सिस्टर' के लिए अलग से नॉर्थ-ईस्ट काउंसिल है। वे राज्य उसी के माध्यम से अपने विकास का काम करते हैं। इधर, 1975 में जो एक देश सिक्किम भारत गणराज्य का अंग बना, उसे भी 2002 में नॉर्थ-ईस्ट काउंसिल का बनाया दिया गया। सिक्किम एक तरफ है और बाकी सातों राज्य दूसरी तरफ, उन सभी के लिए अलग से नॉर्थ-ईस्ट काउंसिल है, लेकिन उनके बीच में स्थित जो दार्जिलिंग क्षेत्र है उसे अलग रखा गया है। यह कैसे रखा जा सकता है। दार्जिलिंग क्षेत्र को भी नॉर्थ-ईस्ट काउंसिल में शामिल करना होगा। नरेंद्र मोदी, अमित शाह व जेपी नड्डा नॉर्थ-ईस्ट काउंसिल में दार्जिलिंग को जोड़ें। गोरखाओं की पहचान व अस्तित्व के लिए यह जरूरी है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी इस दिशा में ध्यान दें। गोरखाओं के संवैधानिक न्याय के लिए हमने जो मांगें की हैं उसे पूरा करवाएं।

हम से राज्य सरकार द्विपक्षीय वार्ता करे। केंद्र सरकार त्रिपक्षीय वार्ता करे। यह विनय तामंग या अनित थापा की नहीं बल्कि गोरखाओं की मांग है। हम कोई हड़ताल नहीं करेंगे, कोई अराजकता नहीं फैलाएंगे, बौद्धिक आंदोलन करेंगे। हमारे पीछे पूरा थिंक टैंक है। नेशनल फोरम फॉर नॉर्थ-ईस्ट में भी मैं यहां के अपने गोरखाओं के मुद्दे रखूंगा। दार्जिलिंग, कालिम्पोंग, तराई व डूआर्स क्षेत्र के मुद्दे उठाऊंगा। इस क्षेत्र को संवैधानिक न्याय देने के लिए नरेंद्र मोदी को सोचना होगा। काम करके दिखाना होगा। वरना, 2021 के मई महीना में वोट मांगने न आएं। पहले काम करके दिखाएं। अभी हमारे हाथ में छह महीना समय है। हम कुछ भी डिसीजन ले सकते हैं। राजनीतिक पार्टियों को आधुनिक बनना होगा। हम सत्ता नहीं, यहां की जनता का उद्धार और मुक्ति चाहते हैं। छह महीना समय है, न्याय कर दो, अन्यथा, यहां का चुनाव कुछ भी हो सकता है। हम निर्णय कुछ भी ले सकते हैं। यहां की जनता कुछ भी निर्णय ले सकती है।

उन्होंने यह भी कहा कि हम उत्तर बंगाल में आग बुझाने वाले फायर ब्रिगेड हैं। वहीं, बिमल गुरुंग पर निशाना साधते हुए कहा कि जो आदमी आया है वह आग लगाने वाला है। फिर यह चेतावनी भी दी कि जो आग बुझाना जानता है, वह आग लगाना भी जानता है। उन्होंने कहा कि हम आपको अलंकार समझाते हैं। दार्जिलिंग पहाड़ में इन दिनों ठंड का मौसम है। पहले जब हम ढिबरी-बाती जला कर पढ़ते थे तब ठंड के मौसम में मां 'घूर' लगाती थी। 'घूर' की आग फूंक देती थी। उस पर पानी गर्म करने के लिए कढ़ाई भी चढ़ा देती थी। हम आग भी तापते थे। फिर, पानी डाल कर उसको बुझा देती थी। उससे कोयला बन जाता था। उस कोयले का अंगीठी में इस्तेमाल करती थी। हम वही घूर की आग हैं। हमें बुझा कर कोयला भी बना दोगे तो फिर हम अंगीठी में जलेंगे।

उन्होंने कहा कि यहां से दिल्ली जाने के लिए कई सारी ट्रेनें हैं। उनमें एक राजधानी एक्सप्रेस है। वह पूरी तरह चकाचक और साफ-सुथरी है। उसमें सूप, चाय, खान-पान, बिस्तर, तकिया, चादर ओढ़ना-बिछौना सारी सुविधाएं मिलती हैं और मात्र 24 घंटे में ही वह दिल्ली भी पहुंचा देती है। एक और ट्रेन है नॉर्थ-ईस्ट एक्सप्रेस जो कोई खास सुविधा नहीं देती और दिल्ली पहुंचाने में 36 घंटे लगाती है। वहीं, एक और ट्रेन ब्रह्मपुत्र मेल भी है जो 48 घंटे में दिल्ली पहुंचाती है और लोकल ट्रेन की तो बात ही छोड़ दीजिए। अब आप यह समझ लीजिए कि विनय तामंग और अनित थापा राजधानी एक्सप्रेस है। तृणमूल कांग्रेस नॉर्थ-ईस्ट एक्सप्रेस है। भाजपा ब्रह्मपुत्र मेल है और जो 21 अक्टूबर को आया है (बिमल गुरुंग) वह लोकल ट्रेन है। अब आप कौन सी ट्रेन में चलेंगे, आप समझें। बड़ा दिन की शुभकामनाएं, 2021 नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं। आपकी सेवा के लिए, आपके न्याय के लिए मैं जान भी दे सकता हूं। जय गोरखा, जय गोरखालैंड।