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ग्लूकोमा या काला मोतियाबिंद एक ऐसी बीमारी है, जिससे आंखों की रोशनी हमेशा के लिए चली जाती है। ये एक साइलेंट बीमारी है। ऐसे में लक्षण दिखाई नहीं देते हैं। आज चाहे साइंस ने कितनी भी तरक्की कर ली हो, लेकिन अभी तक ऐसा कोई इलाज नहीं है जो ग्लूकोमा में अंधे हो चुके व्यक्ति की आंख की रोशनी वापस ला दे। एम्स के डॉक्टर कहते हैं कि बेहद अजीब है लेकिन आंखों में डाली जाने वाली विशेष दवा भी इस बीमारी को पैदा कर सकती है।
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काला मोतिया में हमारी आंखों की ऑप्टिक नर्व पर दबाव पड़ता है, जिससे उन्हें काफी नुकसान पहुंचता है। आंखों की ऑप्टिक नर्व ही सूचनाएं और किसी चीज का चित्र मस्तिष्क तक पहुंचाती हैं। यदि ऑप्टिक नर्व और आंखों के अन्य भागों पर पड़ने वाले दबाव को कम न किया जाए तो आंखों की रोशनी पूरी तरह जा सकती है। इसलिए बगैर विशेषज्ञ सलाह के आई ड्रॉप या फिर दवाएं नहीं लेनी चाहिए। आई ड्रॉप या फिर दवाओं में मौजूद स्ट्रेरॉयड से उनको नुकसान पहुंचता है। बीपी और डायबिटीज वाले मरीजों के मामले में भी ग्लूकोमा का खतरा बढ़ जाता है।
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ग्लूकोमा को साइलेंट थीफ कहते हैं। यह चुपचाप आंखों की रोशनी को खत्म करता रहता है। 80-90 फीसदी लोगों को पता भी नहीं चलता कि उन्हें ग्लूकोमा की शिकायत शुरू हो चुकी है। बता दें कि कई बार धूल या किसी कारण हमारी आंखों में जलन होने लगती है। ऐसे में हम बिना डॉक्टरी सलाह लिए मेडिकल स्टोर्स से आई ड्रॉप ले आते हैं और उन्हें आंखों में डालते रहते हैं। ऐसा ये लोग कई-कई महीनों तक करते रहते हैं और चाहे बच्चा हो या बड़े आखिरकार ग्लूकोमा की चपेट में आ जाते हैं। ये स्टेरॉइड वाली आई ड्रॉप्स आंखों की रोशनी छीन लेती हैं। ऐसे बहुत सारे मरीज अस्पताल आते हैं। लोगों के लिए इसे समझना बेहद जरूरी है।
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