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मॉनसून आने के साथ ही आकाश से बिजली गिरने की घटनाएं बढ़ गई हैं। इसके चलते उत्तर प्रदेश में 50 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई। राजस्थान में भी 20 से ज्यादा लोग मारे गए हैं। बिहार से भी 6 लोग मर गए। आसमानी बिजली गिरने की वजह से हर साल भारत में सैकड़ों लोग जान गंवा बैठते हैं। ऐसे में हम आपको बता रहे हैं कि आसमानी बिजली क्या होती है और यह क्यों गिरती है—
बिजली चमकना एक प्राकृतिक घटना है। जब ज्यादा गर्मी और नमी मिलती है तो बिजली वाले खास तरह के बादल 'थंडर क्लाउड' बन जाते हैं और तूफान का रूप लेते हैं।
सतह से करीब 8-10 किलोमीटर ऊंचे इन बादलों के निचले हिस्से में निगेटिव और ऊपरी हिस्से में पॉजिटिव चार्ज ज्यादा रहता है। दोनों के बीच अंतर कम होने पर तेजी से होने वाला डिस्चार्ज बिजली कड़कने के रूप में सामने आता है।
बादलों के बीच बिजली कड़कना हमें नजर आता है और उससे नुकसान नहीं है। नुकसान तब होता है जब बादलों से बिजली जमीन पर आ जाती है।
एक साथ भारी मात्रा में ऊर्जा धरती के एक छोटे से हिस्से पर गिरती है। एक बार बिजली गिरने से कई करोड़ वॉट ऊर्जा पैदा होती है। इससे आसपास के तापमान में 10,000 डिग्री से लेकर 30,000 डिग्री तक का इजाफा हो सकता है।
आसमानी बिजली कई तरीकों से हमला कर सकती है। डायरेक्ट स्ट्राइक उतनी ज्यादा नहीं होती मगर यह सबसे जानलेवा मानी जाती है। अगर किसी इंसान पर सीधे बिजली गिरे तो वह डिस्चार्ज चैनल का हिस्सा बन जाता है। अधिकतर डायरेक्ट स्ट्राइक्स खुले इलाकों में होती हैं। ऐसे हालात में वो इंसान उस बिजली के लिए शॉर्ट सर्किट का काम करता है। ऐसा तब होता है जब वो इंसान बिजली गिरने की जगह के एक या दो फुट के फासले पर होता है। सबसे ज्यादा प्रभावित वो लोग होते हैं, जो बारिश के दौरान किसी पेड़ के नीचे शरण लेते हैं।
पेड़ के नीचे शरण लेने वालों के ऊपर बिजली गिरने का ज्यादा खतरा रहता है। इस घटना को 'साइड फ्लैश' कहते हैं। ऐसा तब होता है जब बिजली पीड़ित के नजदीक की किसी लंबी चीज पर गिरती है और करंट का एक हिस्सा लंबी चीज से होते हुए पीड़ित तक पहुंचता है। भारत में एक-चौथाई मौतें पेड़ के नीचे या पास खड़े लोगों की होती है।
ग्राउंड करंट दूसरा तरीका है। जिस जगह बिजली गिरती है उसके आसपास करंट फैल जाता है। अमेरिका की वेदर सर्विस के अनुसार, सबसे ज्यादा मौतें इसी की वजह से होती हैं। कंडक्शन (चालकता) की वजह से भी मौतें होती हैं।
बिजली गिरने की घटनाएं कब-कब होती हैं
एनुअल लाइटनिंग रिपोर्ट 2019-20 के अनुसार, 25-31 जुलाई के बीच बिजली गिरने सये सबसे ज्यादा मौतें हुई। इस दौरान देशभर में बिजली गिरने की 4 लाख से ज्यादा घटनाएं दज्र हुईं।
बिजली गिरना इतना खतरनाक क्यों है
आकाशीय बिजली का तापमान सूर्य के ऊपरी सतह से भी ज्यादा होता है।
इसकी क्षमता 300 किलोवॉट अर्थात 12.5 करोड़ वॉट से ज्यादा चार्ज की होती है।
यह बिजली मिली सेकेंड से भी कम समय के लिए ठहरती है।
दोपहर के वक्त इसके गिरने की संभावना ज्यादा होती है।
यह मनुष्य के सिर, गले और कंधों को सबसे ज्यादा प्रभावित करती है।
मौतें कम करने का क्या है उपाय
बिजली गिरने की घटनाएं आमतौर पर तय पैटर्न के हिसाब से होती हैं। पूर्वी भारत में कालबैशाखी नाम के तूफान आते हैं जिनके साथ बिजली गिरती है। बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़ और उत्तर प्रदेश में मॉनसून से पहले बिजली गिरने की घटनाएं ज्यादा होती हैं। CROPC के अनुसार, किसानों, चरवाहों, बच्चों और खुले में मौजूद लोगों को पहले चेतावनी देना जरूरी है। स्थानीय स्तर पर एक प्लान होना चाहिए।
आसमानी बिजली के खतरे को कम कैसे कर सकते हैं
सक्युलंट पौधे जैसे नीम, पीपल और बगरद आदि लगाए जाएं
सड़कों के किनारे कच्ची जगहों पर फलदार पौधे लगाएं।
ऊंची बिल्डिंगों पर तड़ित चालक (लाइटनिंग कंडक्टर) लगाना जरूरी किया जाए।
बिजली पैदा करने वाली चीजों से दूरी बनाकर रखें, जैसे रेडिएटर, फोन, धातु के पाइप, स्टोव इत्यादि।
अगर आप बादलों के गरजने के समय घर के अंदर हैं तो घर के अंदर ही रहें।
बिजली चमकने के दौरान खुले मैदान या पेड़ के नीचे न रहकर किसी ऊंची बिल्डिंग के नीचे खड़े हों।
इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस का इस्तेमाल न करें।
जिस समय बिजली कड़क रही हो, मोबाइल का इस्तेमाल नहीं करें।
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