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जब कभी आप ट्रेन में सफर करते हैं तो देखा होगा कि उसमें कई तरह के कोच होते हैं। इनमें AC, स्लीपर, जनरल जैसे कोच शामिल होते हैं। आमतौर पर AC कोच ट्रेन के बीच में ही लगे होते हैं। अधितकर ट्रेनों में पहले इंजन, फिर जनरल डिब्बा, फिर कुछ स्लीपर और बीच में एसी डिब्बे उसके बाद फिर से स्लीपर और स्लीपर के बाद एक या दो जनरल डिब्बा और लास्ट में गार्ड रूम होते हैं। अगर किसी ट्रेन में सभी AC कोच हों तो बात अलग है।
रेलवे के अनुसार ट्रेन में कोच डिजाइन सेफ्टी और पैसेंजर की सुविधा को ध्यान में रखते हुए बनाया जाता है। ट्रेनों में इस तरह कोच लगाने का ये क्रम अंग्रेज राज से चला आ रहा है। अपर क्लास के कोच और लेडीज कंपार्टमेंट ट्रेन के बीच में होते हैं। वहीं, इंजन के एकदम पास लगेज कोच और सेकेंड क्लास के डिब्बे लगाए जाते हैं। इंजन के पास वाले कोच में बीच वाले कोच के मुकाबले ज्यादा झटके महसूस होते हैं।
इसके अलावा आमतौर पर सभी रेलवे स्टेशन के एग्जिट गेट स्टेशन के बीच में होते हैं। ऐसे में जब प्लेटफॉर्म पर ट्रेन रुकती है तो AC कोच एग्जिट गेट से काफी पास में होते हैं। ऐसे में AC कोच में यात्रा करने वाले पैसेंजर भीड़ से बचकर कम टाइम में गेट से बाहर निकल सकते हैं। इसलिए AC कोच के पैसेंजर को बेहतर सुविधा के लिहाज से ऐसा किया जाता है।
रेलवे में AC क्लास के डिब्बे बीच में तब लगाए जाने का चलन शुरू हुआ, जब भारत में स्टीम इंजन चलता था। इसके बाद डीजल इंजन आए। इन दोनों इंजनों में शोर बहुत होता था। जब ट्रेन चल रही हो तो शोर कुछ ज्यादा ही होता है। इससे AC क्लास के पैसेंजर को कम शोर सुनना पड़े इस वजह से AC डिब्बा इंजन से थोड़ा दूर लगाया जाता था। हालांकि, अब ज्यादातर इलेक्ट्रिक इंजन चल रहे हैं, जिनके चलने पर शोर कम से कम होता है।
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