आम आदमी के पास यह सवाल हमेशा खड़ा रहता है कि वह अपने पैसे कहां निवेश करें. खासकर रिटायरमेंट के बाद जब आय के स्रोत नहीं होते और लोगों को निवेश पर ही जीना पड़ता है. नेशनल पेंशन सिस्टम (NPS) और एंप्लाइज प्रोविडेंट फंड (EPF) ये दो ऐसे विकल्प हैं जहां निवेशक पैसा लगाना चाहते हैं.

ये दोनों ही विकल्प निवेश के लिहाज से बेहतर हैं, ऐसे में निवेशक भ्रमित हो जाता है कि आखिर उसे कहां पैसा लगाना चाहिए, जिससे वह सुरक्षित भी रहे और फायदा भी बड़ा हो। 

EPF में कौन कर सकता है योगदान : देश में प्रोविडेंट फंड में निवेश सबसे सुरक्षित माना जाता है और यह काफी पुराना है. यही कारण है कि लोगों का इसपर विश्वास भी बहुत है. किसी भी ऐसी कंपनी जहां 20 से अधिक कर्मी हों, उन्हें उन्हें इस फंड में निवेश करना अनिवार्य होता है. इसमें योगदान के लिए 15 हजार की सैलरी होनी चाहिए. हालांकि कम वेतन वाले भी ईपीएफ में योगदान दे सकते हैं, इसकी कोई बाध्यता नहीं है. जिनकी सैलरी 15 हजार है वे इसमें 12 प्रतिशत तक योगदान दे सकते हैं.

NPS में कौन कर सकता है योगदान : एनपीएस यानी नेशनल पेंशन सिस्टम एक नया स्कीम है. यह ईपीएफ की तरह पुराना नहीं है, जिसपर लोगों का भरोसा बना हुआ है. यह एक सरकारी रिटायरमेंट सेविंग स्कीम है, जिसे केंद्र सरकार ने 1 जनवरी 2004 को लॉन्च किया था. इसमें भारतीय नागरिक और ओवरसीज सिटीजन ऑफ इंडिया कार्डहोल्डर्स निवेश कर सकते हैं. एनपीएस एक वालंटरी कांट्रिब्यूशन स्कीम है जिसमें Tier 1 में 500 रुपये और Tier 2 खाते में न्यूनतम 1 हजार रुपये का न्यूनतम योगदान किया जा सकता है. कोई भी इंडिविजुअल अपने एंप्लायर के जरिए या स्वतंत्र रूप से एनपीएस से जुड़ सकता है.

टैक्स डिडक्शन : रेगुलर टैक्स सिस्टम के तहत एंप्लॉयर के जरिए 1.5 लाख रुपये तक का एनपीएस (Tier 1) में एंप्लाई कांट्रिब्यूशन कुल आय से डिडक्ट हो सकता है. वहीं रेगुलर टैक्स सिस्टम के तहत एंप्लाई का 50 हजार रुपये का अपना कांट्रिब्यूशन कुल आय में डिडक्ट हो सकता है. एनपीएस सब्सक्राइबर्स के 60 वर्ष की उम्र का होने पर उन्हें कॉर्पस से 60 फीसदी रकम निकालने की मंजूरी मिलती है. शेष 40 फीसदी रकम को एन्यूटी के रूप में इंडिविजुअल को पे किया जाता है. इसके अलावा योजना का हिस्सा बनने के 10 साल बाद कॉर्पस से 25 फीसदी तक रकम निकालने की मंजूरी मिलती है.

ईपीएफ में रेगुलर टैक्स सिस्टम के तहत कुल आय से 1.5 लाख रुपये तक का एंप्लाई कांट्रिब्यूशन डिडक्ट हो सकता है. इसके अलावा बेसिक सैलरी के 12 फीसदी तक के एंप्लाई कांट्रिब्यूशन को अनुमति है. सिंप्लीफाइड टैक्स सिस्टम के तहत ईपीएफ में कोई डिडक्शंस नहीं मिलता है. नौकरी समाप्त होने के बाद ब्याज टैक्सेबल हो जाता है. हालांकि यहां शर्तें लागू हैं और बीमारी तथा अन्य परिस्थितिपयों में टैक्स नहीं देना पड़ता है. बजट के नये प्रावधान के अनुसार हाई सैलरी पाने वालों को ईपीएफ पर भी टैक्स देना पड़ेगा.