प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की डायरी का एक पन्‍ना इन दिनों खूब वायरल हो रहा है, जिसमें वे देश के बारे में अपने विचार रख रहे हैं। डायरी में उन्होंने संस्कृत के कुछ सूक्त वाक्यों को लिखा है जिसे आज भी वह अपने भाषणों में इस्तेमाल करते हैं। नरेंद्र मोदी ने ये डायरी तब लिखी थी जब वह ना तो प्रधानमंत्री थे और ना ही मुख्यमंत्री। उस समय वे सिर्फ बीजेपी के एक साधारण कार्यकर्ता हुआ करते थे। उन्होंने डायरी में भारत के गौरवशाली परंपरा, दर्शन, विश्व बंधुत्व और विश्व कल्याण की भावना को बयां करते हुए संस्कृत के सूक्त वाक्‍य लिखे हैं। आगे जानें क्या लिखा है डायरी में। 

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- हमारी चेतना है, हमारी प्रकृति है- विविधता में एकता।

- कार्य संस्कृति- त्येन त्यक्तेन भूंजिथा: (यानी त्याग पुरस्कृत होता है, फलदायी होता है) 

- कार्यशैली- सहनाववतु. सह नौ भुनक्तु. (यानी ईश्वर हम सभी की रक्षा करें। हम सभी का एकसाथ पालन करें) 

- राष्ट्रीय आकांक्षा- राष्ट्राय स्वाहा, इदं राष्ट्राय इदं न मम.(यानी मैं अपने जीवन को राष्ट्र की सेवा में समर्पित करता हूं, यह मेरा नहीं है)

- वैश्विक दृश्य वसुधैव कुटुंबकम् (यानी पूरा विश्व, पूरी धरती हमारा परिवार है)

- परंपरा है- चरैवेति चरैवेतियानी चलते रहना, लगातार चलते रहना, नए विचारों के लिए तैयार होकर चलते रहना।

- सपना है- सर्वे अपि सुखिनः सन्तुइसका यानी कि हमारा सपना है कि पूरी दुनिया सुखी रहे।

- मर्यादा है- न कामये राज्यम, न स्वर्गम्, ना पुनर्भवम्, इसका अर्थ है कि मेरी न किसी राज्य के राजा बनने की कामना है और न ही स्वर्ग की कामना है और ना ही पुनर्जन्म की कामना है।

- ऊर्जा है- वंदे मातरम् (यानी मातृभूमि का वंदन) 

- प्राण शक्ति है- सौ करोड़ देशवासी और हजारों वर्ष की धरोहर।

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आपको बता दें कि इस डायरी में नरेंद्र मोदी ने एक जगह भारत की 100 करोड़ आबादी का जिक्र किया है। इससे ये अंदाजा लगाया जा सकता है कि उन्होंने ये बातें 1990 के दशक के आखिर या 2000 के दशक की शुरुआत में लिखी होगी। इसकी वजह ये भी है कि 2001 की जनगणना में भारत की आबादी पहली बार 100 करोड़ के पार हुई थी।