दुनिया के देशों ने 76 साल पहले संयुक्त राष्ट्र संघ बनाया था जिसके नियम व कानून मानने हाते हैं। लेकिन अफगानिस्तान के मामले में आज वो भी लाचार है। तालिबान के मामले में संयुक्त राष्ट्र ठोस कार्रवाई के बजाय सिर्फ अपील करने को मजबूर है। दरअसल संयुक्त राष्ट्र तभी कोई कदम उठा सकता है जब वीटो पॉवर वाले देश ऐसा करने के लिए राजी हो जाएं। वीटो पॉवर वाले देश हैं- अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन, रूस और चीन।

तालिबान को लेकर इन देशों में एक राय नहीं है। यहां ये भी जान लेना जरूरी है कि किसी देश में युद्ध रोकने में संयुक्त राष्ट्र सीधा दखल नहीं देता। अगर कहीं हालात बिगड़े हुए हैं तो जब तक सभी पक्ष संयुक्त राष्ट्र को पंच मानने को तैयार ना हों, संयुक्त राष्ट्र कुछ नहीं कर सकता। वैसे भी संयुक्त राष्ट्र पीसकीपर है, वो शांति प्रवर्तन नहीं कर सकता है। यानी उसका काम सिर्फ शांति कायम करने की कोशिश भर है। सबसे बड़ी बात ये है कि अफगानिस्तान में रूस, चीन और अमेरिका जैसे बड़े देशों के दखल के कारण संयुक्त राष्ट्र की भूमिका छोटी हो जाती है।

वहीं अफगानिस्तान में संयुक्त राष्ट्र खाद्य एजेंसी के प्रमुख ने कहा है कि देश में तालिबान के कब्जे के बाद वहां एक मानवीय संकट उत्पन्न हो रहा है, जिसमें 1.4 करोड़ लोगों के सामने भुखमरी की गंभीर समस्या खड़ी हो गई है। अफगानिस्तान के संघर्ष, तीन सालों में देश के सबसे बुरे सूखे ने और कोविड महामारी के सामाजिक और आर्थिक प्रभाव ने पहले से ही विकट स्थिति को तबाही की ओर धकेल दिया है। यहां 40 फीसदी से ज्यादा फसलें नष्ट हो गई हैं और सूखे से पशुधन तबाह हो गया है। तालिबान के आगे बढ़ने के साथ-साथ सैकड़ों-हजारों लोग विस्थापित हो गए हैं और सर्दियां भी आने वाली है।
अफगानिस्तान में संयुक्त राष्ट्र खाद्य एजेंसी की निदेशक मेरी एलेन मैकग्रार्टी ने संघर्ष को रोकने का आह्वान किया और दान देने वालों से आग्रह किया कि वे देश में भोजन पहुंचाने के लिए आवश्यक 20 करोड़ डॉलर प्रदान करें। ताकि सर्दियां शुरू होने और सड़कें अवरुद्ध होने से पहले यह समुदायों तक पहुंच सके।