पिछले दो दशक के दौरान विश्व में 7348 बड़ी प्राकृतिक आपदाएं दर्ज की गईं, इनमें 12.3 लाख लोगों की जान गई, 4.2 अरब लोग प्रभावित हुए और 2.97 लाख करोड़ डॉलर का आर्थिक नुकसान हुआ। सबसे ज्यादा नुकसान सूखा, बाढ़, भूकंप, सुनामी, जंगलों में आग और अत्यधिक तापमान से हुआ है। 

संयुक्त राष्ट्र ने इंटरनेशनल डे फॉर डिजास्टर रिस्क रिडक्शन पर जारी रिपोर्ट में कहा कि अगले दशक में लू और सूखा बड़ा खतरा होंगे क्योंकि तापमान में बढ़ोतरी हो रही है। रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2000 से 2019 के बीच चीन (577) और अमरीका (467) में सबसे ज्यादा आपदाएं दर्ज की गईं। इनके बाद भारत (321), फिलीपींस (304) और इंडोनेशिया (278) का स्थान है। इस सूची में शीर्ष 10 देशों में से आठ एशिया के हैं। आपदा जोखिम में कमी पर संयुक्त राष्ट्र महासचिव की विशेष प्रतिनिधि ममी मिजुटोरी के मुताबकि अच्छी खबर यह है कि ज्यादा जिंदगियों को बचा लिया गया, लेकिन बुरी खबर यह है कि जलवायु आपातकाल के विस्तार के कारण अधिक लोग प्रभावित हो रहे हैं। 

उन्होंने सरकारों का आह्वान किया कि वे पूर्व चेतावनी प्रणालियों में निवेश करें और आपदा जोखिम में कमी लाने की रणनीतियों को लागू करें। जानकारी के अनुसार रिपोर्ट के लिए आंकड़े उपलब्ध कराने वाले बेल्जियम की यूनिवर्सिटी ऑफ लॉवेन के सेंटर फॉर रिसर्च एपिडेमियोलॉजी ऑफ डिजास्टर्स की देबराती गुहा ने कहा कि आने वाले दो दशक में भी प्राकृतिक आपदाओं में वृद्धि जारी रही तो मानव जाति के लिए यह बड़ा खतरा होगा। आने वाले दशक में लू हमारी सबसे बड़ी चुनौती बनने जा रही है विशेषकर गरीब देशों में। इस साल का सितंबर माह सबसे गर्म रिकॉर्ड हुआ है।

जानकारी के मुताबिक जुलाई में विश्व मौसम संगठन ने कहा था कि वैश्विक तापमान में अगले पांच साल तक बढ़ोतरी जारी रहेगी और अस्थायी रूप से यह औद्योगिक काल से पूर्व के स्तर से 1.5 डिग्री सेल्सियस ऊपर जा सकता है। मालूम हो कि विनाशकारी जलवायु परिवर्तन से बचने के लिए विज्ञानियों ने तापमान में बढ़ोतरी की सीमा 1.5 डिग्री सेल्सियस ही तय की है।