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बेंगलुरु। कर्नाटक सरकार (Government of Karnataka) ने सोमवार को उच्च न्यायालय (HC) को बताया कि हिजाब एक आवश्यक धार्मिक प्रथा है या नहीं यह निर्धारित करने के लिए उच्चतम न्यायालय का 2018 का सबरीमाला फैसला देश के कानून के रूप में लिया जा सकता। महाधिवक्ता प्रभुलिंग नवदगी ने कहा, 'सबरीमाला का फैसला अंतिम निर्णय है और इसे देश के कानून के रूप में लिया जा सकता है।' मुख्य न्यायाधीश रितु राज अवस्थी और न्यायमूर्ति कृष्णा एस दीक्षित और न्यायमूर्ति जेएम खाजी की खंडपीठ कर्नाटक में मुस्लिम छात्राओं द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है, जिसमें दावा किया गया है कि उन्हें सरकारी आदेश के कारण कॉलेजों में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी जा रही है।
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इस आदेश में प्रभावी रूप से हिजाब पहनने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। नवदगी ने अनुच्छेद 28 पर संविधान सभा की बहस के दौरान डॉ बीआर अंबेडकर के भाषण का भी हवाला देते हुए कहा कि पूरी तरह से सरकारी फंड से संचालित किसी भी शैक्षणिक संस्थान में कोई धार्मिक शिक्षा प्रदान नहीं की जाएगी। इस दौरान उन्होंने केएम मुंशी के उद्धरणों का भी उल्लेख किया। जिन्होंने बहस के दौरान पूछा था कि अगर भारत को धर्मनिरपेक्ष बनना है , तो क्या भारत को धर्म को एक अधिकार के रूप में अपनाना।
उन्होंने कहा कि यह दिखाने के लिए कि कुछ प्रथाएं आवश्यक हैं, जब भी कुरान पर विश्वास जताया गया न्यायालय ने उसे नकार दिया और ऐसा चार बार हो चुका है। सरकार की ओर से प्रस्तुतीकरण देते हुए नवदगी ने कहा कि याचिकाकर्ताओं के दावे गंभीर हैं, क्योंकि वे धार्मिक स्वीकृति का हिस्सा बनने के लिए एक विशेष पोशाक पहनने की मांग कर रहे हैं, ताकि इस्लामी आस्था का पालन करने वाली हर महिला को बाध्य किया जा सके। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि रिकॉर्ड में कोई भी सामग्री न्यायालय के सामने उनके दावे को साबित करने के लिए नहीं रखी गई है कि हिजाब पहनना एक आवश्यक धार्मिक प्रथा है।
नवदगी ने कहा कि सरकार ने संस्थानों में ड्रेस कोड निर्धारित नहीं किया है, लेकिन यह कर्नाटक शिक्षा अधिनियम की प्रस्तावना है, जो एक धर्मनिरपेक्ष वातावरण को बढ़ावा देता है। इसलिए राज्य का रुख यह है कि धार्मिक पहचान उजागर करने वाली कोई भी चीज स्कूलों में नहीं होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि यह देखते हुए कि भविष्य में कोई व्यक्तिगत मामला अदालत के सामने आ सकता है कि धर्म की स्वतंत्रता के उनके अधिकार का उल्लंघन होगा। इसलिए न्यायालय को अनुच्छेद 25 के पहलू में जाना चाहिए। न्यायमूर्ति खाजी द्वारा पूछे गए एक प्रश्न का उत्तर देते हुए कि क्या आवश्यक धार्मिक अभ्यास अंतरात्मा की स्वतंत्रता पर भी लागू होता है, उन्होंने कहा कि अंतरात्मा की स्वतंत्रता की अवधारणा विश्वास या गैर-विश्वास से संबंधित है और जो व्यक्ति अपने विवेक के रूप में सामने आता है उसका परिणाम धार्मिक होता है। न्यायालय इस मामले की अगली सुनवाई 22 फरवरी (मंगलवार) को दोपहर 2:30 बजे करेगा।
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