
सरकार द्वारा शुरू की गई अति महत्वाकांक्षी ‘स्मार्ट सिटी परियोजना’ में कई राज्य अपना जलवा दिखाने से चूक गए हैं। पश्चिम बंगाल और पूर्वोत्तर के कई राज्य इस परियोजना में फिसड्डी साबित हो रहे हैं। बात करें बेहतर प्रदर्शन की तो मध्य प्रदेश इस मामले में अन्य राज्यों से काफी आगे है।
2015 में शुरु की गयी थी परियोजना
51 प्रतिशत ही इस्तेमाल हुई है राशि
ये है मुख्य कारण
उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद, मेरठ और रामपुर, पश्चिम बंगाल के बिधाननगर, दुर्गापुर और हल्दिया, महाराष्ट्र में ग्रेटर मुंबई और अमरावती तथा तमिलनाडु के डिंडीगुल को पांच साल में महज दो करोड़ रुपये ही केन्द्रीय राशि मिली है। मंत्रालय के एक अधिकारी ने इन शहरों से परियोजनाओं के प्रस्ताव नहीं मिलने को कम राशि जारी होने की मुख्य वजह बताया है।
पूर्वोत्तर के राज्य सबसे पिछड़े
इसके अनुसार स्मार्ट सिटी के तहत इन शहरों में चल रही विभिन्न परियोजनाओं की पूर्वोत्तर राज्यों में न सिर्फ गति बहुत धीमी है बल्कि तमाम शहर केन्द्रीय राशि का पैसा भी खर्च करने में सुस्त हैं। परियोजना की राज्यवार समीक्षा के मुताबिक अरुणाचल प्रदेश के दो शहरों में एक भी परियोजना अब तक पूरी नहीं हो पायी है, जबकि असम के गुवाहटी में अब तक सिर्फ पांच परियोजनाओं पर काम शुरु हो पाया, इनमें से दो ही पूरी हो पायी। मणिपुर और मेघालय का रिपोर्ट कार्ड भी शून्य है और सिक्किम में सिर्फ एक परियोजना पूरी हुयी। इस मामले में सिर्फ त्रिपुरा, नगालैंड और मिजोरम में लगभग आधी परियोजनायें पूरी हो पायीं हैं।
मध्य प्रदेश अव्वल
परियोजना में शामिल राज्य के सात शहरों में इंदौर, 154 परियोजनायें पूरी कर देश के सौ शहरों में सबसे आगे है। वहीं कर्नाटक में 193, उत्तर प्रदेश में 136 और गुजरात में 131 परियोजनायें पूरी हो गयी हैं।
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