भारत ने अफगानिस्तान में तालिबान के शासन व्यवस्था पर सवाल उठाते हुए आज कहा कि नयी व्यवस्था के कारण विश्व में आतंकवाद, कट्टरवाद और अस्थिरता फैलने का खतरा बढ़ा है और दुनिया को ऐसी व्यवस्था को मान्यता का फैसला सोच समझ कर सामूहिक रूप से लेना चाहिए। 

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ताजिकिस्तान की राजधानी दुशान्बे में हाइब्रिड मॉड में आयोजित एससीओ के 21वें शिखर सम्मेलन के अंतर्गत शाम को अफगानिस्तान की स्थिति पर एससीओ एवं सामूहिक सुरक्षा संधि संगठन (सीएसटीओ) के बीच एक विशेष बैठक को भी वीडियो लिंक के माध्यम से संबोधित किया। विदेश मंत्री एस जयशंकर इस मौके पर दुशान्बे में मौजूद थे। मोदी ने अपने संबोधन में कहा कि अफगानिस्तान में हाल के घटनाक्रम का सबसे अधिक प्रभाव हम जैसे पड़ोसी देशों पर होगा और इसलिए, इस मुद्दे पर क्षेत्रीय फोकस और क्षेत्रीय सहयोग बहुत ही आवश्यक है। उन्होंने कहा कि इस संदर्भ में हमें चार विषयों पर ध्यान देना होगा। 

पहला मुद्दा यह है कि अफगानिस्तान में सत्ता-परिवर्तन, समावेशी नहीं है और यह बिना किसी सम्मति या समझौते के हुआ है। इससे नई व्यवस्था की स्वीकार्यता पर सवाल उठते हैं। महिलाओं तथा अल्पसंख्यकों सहित अफगान समाज के सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व भी महत्वपूर्ण है। इसलिए यह आवश्यक है कि नई व्यवस्था की मान्यता पर फैसला विश्व समुदाय सोच-समझ कर और सामूहिक तरह से ले। इस मुद्दे पर भारत संयुक्त राष्ट्र की केंद्रीय भूमिका का समर्थन करता है। उन्होंने कहा कि दूसरा विषय है कि अगर अफग़़ानिस्तान में अस्थिरता और कट्टरवाद बना रहेगा, तो इससे पूरे विश्व में आतंकवादी और उग्रवादी विचारधाराओं को बढ़ावा मिलेगा। अन्य उग्रवादी समूहों को ङ्क्षहसा के माध्यम से सत्ता पाने का प्रोत्साहन भी मिल सकता है। 

उन्होंने कहा कि हम सभी देश पहले भी आतंकवाद से पीड़ित रहे हैं। और इसलिए हमें मिल कर सुनिश्चित करना चाहिए कि अफगानिस्तान की धरती का उपयोग किसी भी देश में आतंकवाद फैलाने के लिए न हो। एससीओ के सदस्य देशों को इस विषय पर सख्त और साझा नियम विकसित करने चाहिए जो आतंकवाद को कतई बर्दाश्त नहीं करने के सिद्धांत पर आधारित हों। आगे चल कर ये नियम वैश्विक आतंकवाद निरोधन सहयोग के लिए भी एक रणनीतिक योजना बन सकते हैं। इनमें सीमापार आतंकवाद और आतंकवादियों के वित्तपोषण जैसी गतिविधियों पर रोक लगाने के लिए एक आचार संहिता बनाना चाहिए। और इनके क्रियान्वयन की प्रणाली भी होनी चाहिए। 

प्रधानमंत्री ने कहा कि अफगानिस्तान के घटनाक्रम से जुड़ा तीसरा विषय यह है कि इससे नशीले पदार्थों, अवैध हथियारों और मानव तस्करी का अनियंत्रित प्रवाह बढ़ सकता है। बड़ी मात्रा में उन्नत हथियार अफगानिस्तान में रह गए हैं। इनके कारण पूरे क्षेत्र में अस्थिरता का खतरा बना रहेगा। इसकी निगरानी करने और सूचनाओं को साझा करने के लिए एससीओ की क्षेत्रीय आतंकवाद निरोधक प्रणाली सकारात्मक भूमिका निभा सकती है। इस महीने से भारत इस संस्था की परिषद की अध्यक्षता कर रहा है। इस विषय पर हम ने व्यावहारिक सहयोग के प्रस्ताव विकसित किये हैं। श्री मोदी ने कहा कि चौथा विषय अफगानिस्तान में गंभीर मानवीय संकट का है। वित्तीय लेनदेन और व्यापार में रुकावट के कारण अफगान जनता की आर्थिक विवशता बढ़ती जा रही है। इसके साथ में कोविड की चुनौती भी उनके लिए यातना का कारण है। विकास और मानवीय सहायता के लिए भारत बहुत वर्षों से अफगानिस्तान का विश्वस्त साझीदार रहा है। अवसंरचना से ले कर शिक्षा, सेहत और क्षमता निर्माझा तक हर क्षेत्र में और अफगानिस्तान के हर भाग में हमने अपना योगदान दिया है। उन्होंने कहा, आज भी हम अपने अफग़़ान मित्रों तक खाद्य सामग्री, दवाइयां आदि पहुंचाने के लिए इच्छुक हैं। हम सभी को मिल कर यह सुनिश्चित करना चाहिए कि अफगानिस्तान तक मानवीय सहायता निर्बाध तरीके से पहुंच सके। उन्होंने कहा कि अफगान और भारतीय लोगों के बीच सदियों से एक विशेष संबंध रहा है। अफगान समाज की सहायता के लिए हर क्षेत्रीय या वैश्विक पहल को भारत का पूर्ण सहयोग रहेगा।