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रूस ने युद्ध के एक साल से ज्यादा हो जाने के बाद यूक्रेन पर हमले एक बार फिर से तेज कर दिए हैं। रूस ने इस बार सुपरसोनिक मिसाइलों से हमला किया है। इस वजह से यूक्रेन में कई स्थानों पर बिजली कट गई है। साथ ही जापोरिझ्जिया स्थित यूक्रेन के सबसे परमाणु पावर प्लांट में भी अंधेरा छा गया। यूक्रेन की सेना के अनुसार रूस ने 6 हाइपरसोनिक किंझल मिसाइलों से हमले किए हैं। इन मिसाइलों के बारे में बताया जा रहा है कि ये आवाज की गति से भी ज्यादा तेजी से उड़ती हैं। इस वजह से जमीन से इन पर मार नहीं की जा सकती है। मतलब की ये मिसाइलें अभेद्य है।
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बता दें कि यूक्रेन को समर्थन देने वाले नाटो देशों के पास भी इन मिसाइलों का कोई जवाब नहीं है। हाइपरसोनिक मिसाइलों की रफ्तार आवाज की गति से भी 5 गुना ज्यादा होती है। इनकी रफ्तार प्रति घंटे 6200 किलोमीटर तक होती है। इन पर किसी भी अडवांस राडार सिस्टम के जरिए निगरानी नहीं की सकती है। इनमें भी दो तरह की मिसाइलें होती हैं। पहली, हाइपरसोनिक ग्लाइड वीकल, जो धरती से मार करती है। जबकि दूसरी, हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइल होती हैं। ये थोड़ा नीचे उड़ती हैं, लेकिन इनकी स्पीड कहीं ज्यादा होती है। इस मिसाइल का जवाब देना दुश्मनों के लिए कठिन है क्योंकि इसमें बेहद कम वक्त मिलता है। ये मिसाइलें परमाणु हथियार भी ले जा सकती हैं।
गौर हो कि किंझाल एक एयर-लॉन्च मिसाइल है। यह परमाणु एवं परंपरागत हथियारों को ले जाने में सक्षम है। ये 480 किलो वजन लेकर 1500 से 2000 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार से उड़ान भर सकती हैं। यह इनकी सामान्य गति है। इनकी गति को 12 हजार किलोमीटर तक बढ़ाया जा सकता है। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के अनुसार रूस हाइपरसोनिक मिसाइलों के मामले में दुनिया में लीड कर रहा है। उन्होंने कहा कि इन मिसाइलों की स्पीड, मारक क्षमता को ट्रैक नहीं किया जा सकता।
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रूस ने बताया कि यूक्रेन युद्ध में इन मिसाइलों का सबसे पहले बीते साल मार्च में इस्तेमाल किया गया था। इन हमलों में एक फ्यूल डिपो तबाह हो गया था। बता दें कि गुरुवार को ही यूक्रेन एयर फोर्स के प्रवक्ता ने कहा कि उनके देश के पास किंझाल मिसाइलों का मुकाबला करने के लिए तकनीक मौजूद नहीं है। आपको बता दें कि अमेरिका हाइपरसोनिक हथियारों को तैयार करने में तेजी से जुटा है। अप्रैल 2022 में ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और अमेरिका के बीच भी इसे लेकर समझौत हुआ है कि वे हाइपरसोनिक हथियारों के निर्माण में एक-दूसरे का सहयोग करेंगे। चीन भी इस तकनीक पर काम कर रहा है। इसके अलावा ईरान, इजरायल और दक्षिण कोरिया भी इसके लिए काम कर रहा है।
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