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रूस द्वारा यूक्रेन पर हमला करने के बाद अब बाल्टिक देश एस्टोनिया, लातविया और लिथुआनिया भी दहशत में आ चुकी हैं। ये देश सोवियत संघ का ही हिस्सा रहे हैं। ऐसे में यहां के लोग इस बात से चिंतित हैं कि वे रूस का अलगा लक्ष्य हो सकते हैं। यूक्रेन पर रूसी हमले ने यहां के लोगों को निर्वासन और उत्पीड़न की यादें ताजा कर दी हैं।
लिथुआनिया के लोग कह रहे हैं हमारे पूर्वजों को साइबेरिया भेज दिया गया था। क्योंकि उन्हें रूसी खुफिया एजेंसी केजीबी ने सताया था। अब हम एक स्वतंत्र लोकतांत्रिक देश में रहते हैं, लेकिन ऐसा लगता है कि कुछ भी हल्के में नहीं लिया जा सकता है।
एस्टोनिया, लातविया और लिथुआनिया और तीनों मौजूदा वक्त में नाटो के सदस्य हैं। ये देश 2004 में नाटो में शामिल हो गए थे। बता दें कि यूक्रेन नाटो का हिस्सा नहीं है। बाल्टिक देश और पोलैंड मॉस्को पर कठोर प्रतिबंधों की मांग करते रहे हैं। लिथुआनियाई विदेश मंत्री गेब्रियलियस लैंड्सबर्गिस ने हाल ही में कहा था कि यूक्रेन की लड़ाई यूरोप की लड़ाई है। अगर पुतिन को वहां नहीं रोका गया, तो वह आगे बढ़ जाएंगे।
लातविया के रक्षा मंत्रालय के राज्य सचिव जेनिस गैरिसन ने कहा है कि रूस हमेशा सैन्य ताकत को मापता है लेकिन इसके साथ ही वह देशों की लड़ने की इच्छा को भी देखता है। एक बार जब वह एक कमजोरी देखते हैं, तो वह उस कमजोरी का फायदा उठाएंगे।
लिथुआनियाई रक्षा मंत्री अरविदास अनुसुस्कस ने कहा है कि ऐसा लगता है कि वे जाने वाले नहीं हैं लेकिन हमें यह समझना चाहिए कि संख्या का मतलब सब कुछ नहीं है। हमारी सीमा पर तकनीकी रूप से बहुत उन्नत सैनिक हैं जो कि अपने काम में निष्णात हैं।
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हालांकि पुतिन ने सार्वजनिक रूप से बाल्टिक देशों पर रूसी नियंत्रण को फिर से स्थापित करने जैसी कोई बात नहीं कही है लेकिन कई एस्टोनियाई, लातवियाई और लिथुआनियाई चिंता करते हैं कि वह सोवियत संघ के सभी पूर्व गणराज्यों में प्रभाव हासिल करना चाहते हैं। बता दें कि बाल्टिक देश सांस्कृतिक और भाषाई रूप से रूसी इतिहास और पहचान से अलग है। हालांकि 200 सालों तक मॉस्को के शासन रहने के कारण इन देशों में रूस का कुछ-कुछ असर अब तक है।
विनियस यूनिवर्सिटी के एक राजनीतिक विश्लेषक नेरिजस मालियुकेविसियस ने न्यूज एजेंसी एपी से बात करते हुए कहा है कि हमने पुतिन को यूक्रेन को अपमानित करते हुए सुना है। वह यूक्रेन को इतिहास का एक कृत्रिम राज्य कहते हैं। ये बातें हमें याद दिलाती हैं कि वह पिछले कई सालों से सभी पूर्व सोवियत देशों के बारे में ऐसी बातें कह रहे हैं।
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