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किसान आंदोलन के दौरान कई ऐसी घटनाएं हुईं जब भाजपा नेताओं को लोगों ने घेर लिया और बड़ी मुश्किल जाने दिया। पार्टी का तीखा विरोध देखते हुए कहा जा रहा था कि भाजपा राज्य में कमजोर है। लेकिन पंजाब चुनाव से ठीक पहले भाजपा में लगातार दूसरी पार्टियों के नेता शामिल हो रहे हैं। राज्य की सत्ताधारी पार्टी कांग्रेस और कभी भाजपा की सहयोगी रहे अकाली दल के तमाम नेता पार्टी में शामिल हुए हैं। बुधवार को भी अकाली दल के सीनियर नेता और महासचिव रविप्रीत सिंह सिद्धू ने भाजपा का दामन थाम लिया। उनके अलावा मानसा सीट से पूर्व विधायक जगदीप सिंह भी भाजपा में शामिल हो गए हैं।
इससे पहले मंगलवार को पूर्व क्रिकेटर दिनेश मोंगिया, विधायक फतेह जंग बाजवा और बलविंदर सिंह लड्डी समेत 16 लोग भाजपा में शामिल हुए थे। यही नहीं 22 दिसंबर को भी कांग्रेस के विधायक गुरमीत सोढ़ी भाजपा में आ गए थे। राज्य के पूर्व डीजीपी सर्बदीप सिंह विर्क समेत ऐसी कई हस्तियां हैं, जो अब भगवा दल का हिस्सा हो गई हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर कमजोर बताई जा रही भाजपा में इतने नेता क्यों शामिल हो रहे हैं। परंपरागत सिखों के बीच पैठ रखने वाले अकाली दल से ज्यादा नेता भाजपा के साथ आते दिखे हैं। आइए जानते हैं, क्या हो सकती हैं इसकी वजहें...
इन इलाकों में अच्छी है भाजपा की स्थिति
भले ही भाजपा का पंरपरागत सिखों के बीच बड़ा जनाधार नहीं है, लेकिन शहरी क्षेत्रों में हिंदू और प्रवासी मतदाताओं के बीच भाजपा खासी मजबूत है। चंडीगढ़ से सटे रूपनगर, मोहाली के अलावा लुधियाना, जालंधर, पठानकोट जैसे शहरों में बड़ी हिंदू आबादी रहती है। यहां प्रवासी मतदाताओं की भी अच्छी खासी तादाद है, जो भाजपा को पसंद करते रहे हैं। अकाली दल के साथ भी भाजपा शहरी क्षेत्रों में ही लड़ती थी। अब अलग होने के बाद समीकरण बदल गए हैं और सिखों की राजनीति के बीच वह अब खुलकर हिंदू वोटों की दावेदारी कर रही है।
हिंदू बहुल इलाकों में भाजपा की पकड़ देखते हुए शहरी क्षेत्रों के नेता उसका दामन थाम रहे हैं। खासतौर पर अकाली दल के बेहद कमजोर नजर आने के चलते भी लोग भाजपा में जा रहे हैं। इन नेताओं को लगता है कि अकाली दल के कमजोर होने की वजह से उसे पड़ने वाला वोट कांग्रेस के खिलाफ होने के चलते भाजपा को पड़ सकता है। ऐसे में नेताओं की कोशिश है कि वे भाजपा के साथ आ जाएं। भाजपा का संगठन भी बेहद पुराना है और वह नई बनी कैप्टन अमरिंदर सिंह की लोक पंजाब कांग्रेस और ढींढसा की अकाली दल संयुक्त के मुकाबले मजबूत स्थिति में दिख रही है। कहा यह भी जा रहा है कि कांग्रेस, आम आदमी पार्टी के बाद फिलहाल भाजपा और अकाली दल के बीच तीसरे नंबर के लिए संघर्ष की स्थिति है।
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