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मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में कोरोना मामले में स्वत: संज्ञान सहित 14 याचिकाओं पर सुनवाई हुई, इस दौरान सरकार की एक्शन टेकन रिपोर्ट से ज्ञात हुआ कि सरकार के स्टोर रुम में 204 वेंटीलेटर पड़े रहे लेकिन इनका उपयोग नहीं हो पाया। कोर्ट ने यह भी निर्देश दिए है कि निजी अस्पतालों ने जिस तरह से इलाज के नाम पर मरीजों से लूट की है उसका आडिट कराया जाए।
प्रदेश सरकार ने द्वारा मामले में 85 पेज की एक्शन टेकन रिपोर्ट हाईकोर्ट में पेश की थी, इसके दावों और आपत्तियों पर आज सुनवाई हुई। हाईकोर्ट ने प्रदेश में निजी अस्पतालों में इलाज की दरों, सरकारी अस्पतालों में सीटी स्कैन मशीनों की सुविधा, वेंटिलेटर, ऑक्सीजन की उपलब्धता, ब्लैक फंगस और कोरोना के तीसरी लहर को देखते हुए किए जा रहे इंतजाम की क्रमबार सुनवाई की।
सुनवाई के दौरान कई बिंदुओं पर सरकार के दावे पर आपत्तियां उठी हैं। सुनवाई में खुलासा हुआ कि प्रदेश में कोरोना की दूसरी लहर के दौरान 204 वेंटिलेटर सरकारी अस्पतालों के स्टोर रूम में बंद पड़े थे, जिन्हें बैकअप व्यवस्था बताकर अस्पतालों में इस्तेमाल ही नहीं किया गया।
सरकार के जवाब पर कोर्ट मित्र ने आपत्ति लेते हुए कहा कि अगर स्टोर रूम में बंद पड़े वेंटिलेटर का इस्तेमाल किया जाता तो संभवत: कोरोना काल में इतनी मौतें नहीं होतीं। कोर्ट मित्र की आपत्ति के बाद हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से स्पष्टीकरण मांगा है कि पीएम केयर फंड से अस्पतालों को मिले वेंटिलेटर का प्रयोग मरीजों के लिए क्यों नहीं हो पाया।
सुनवाई के दौरान महाराष्ट्र की तर्ज पर एमपी में भी निजी अस्पतालों के बिलों का आडिट कराए जाने की मांग कोर्ट मित्र की ओर की गई। साथ हीए हाईकोर्ट ने प्रदेश के 52 में से 48 जिलों के जिला अस्पतालों में सीटी स्कैन मशीन ना होने पर भी जवाब मांगा है।
कोरोना के तीसरी लहर को दृष्टिगत रखते हुए इलाज की व्यवस्थाओं पर हाईकोर्ट ने एतराज जताया। हाईकोर्ट ने पाया कि सरकार तीसरी लहर के मद्देनजर सिर्फ बच्चों के लिए अस्पतालों के मौजूदा स्ट्रक्चर में ही फेरबदल करके व्यवस्थाएं कर रही है, जबकि हेल्थ सेक्टर में डॉक्टर्स की भर्ती सहित बड़े कदम उठाए जाने की जरुरत है। ऐसे में हाईकोर्ट ने इन तमाम बिंदुओं पर सरकार से स्पष्टीकरण मांगा है। इसके लिए राज्य सरकार को 10 दिनों का वक्त दिया है। मामले पर अगली सुनवाई 21 जून को होगी।
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