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पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान एकबार फिर तालिबानियों के साथ खड़े हैं। इमरान खान ने अफगानिस्तान में तालिबान के सत्ता पर काबिज होने का समर्थन किया है। इमरान खान ने यहां तक कहा है कि अफगानों ने गुलामी की बेड़ियों को तोड़ दिया है।
अफगानिस्तान में तालिबान ने पूरी तरह से पांव पसार लिया है। अफगानिस्तान सरकार के कब्जे वाले इकलौते शहर काबुल पर भी तालिबानियों ने रविवार को कब्जा कर लिया। उससे पहले अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी को अपने सहयोगियों के साथ देश छोड़कर भागने पर मजबूर होना पड़ा।
इमरान खान दरअसल सोमवार को सिंगल नेशनल करिकुलम (एसएनसी) के पहले चरण के पाठ्यक्रम की लॉन्चिंग में पहुंचे थे। यह सत्तारूढ़ पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ के मेनिफेस्टो का हिस्सा था। इमरान खान ने यह भी कहा कि समानांतर शिक्षा प्रणाली की वजह से अंग्रेजी स्कूलों में आई, जिसकी वजह से पाकिस्तान में दूसरों की संस्कृति पनप गई।
इमरान खान के भाषण में पश्चिमी दर्शन के खिलाफ रोष साफ नजर आया। उन्होंने कहा कि जब आप किसी की संस्कृति को अपनाते हैं तो आप इसे श्रेष्ठ मानते हैं और आप इसके गुलाम बन जाते हैं। उन्होंने कहा, यह मानसिक गुलामी की एक प्रणाली बनाता है जो वास्तविक गुलामी से भी बदतर है।
वहीं पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने तो यहां तक कह दिया कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय को अफगानिस्तान के साथ लगातार संपर्क में रहना चाहिए। कुरैशी ने यह भी कहा है कि पाकिस्तान, अफगानिस्तान में राजनीतिक स्थिरता वापस लाने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहेगा।
इमरान खान ने कहा कि आधीन दिमाग कभी बड़े निर्णय नहीं ले सकते हैं। पाकिस्तान पर पहले ही तालिबान विद्रोह के समर्थन का आरोप लगता रहा है। शायद यही वजह है कि अफगानिस्तान में 20 वर्षों की शांति के बाद जब अमेरिका ने अपने सैनिकों को वापस बुलाया तो फिर से तालिबान एक्टिव हो गया। रविवार को काबुल भी तालिबान के कब्जे में आ गया। अफगानिस्तान लगातार पाकिस्तान पर आरोप लगाता रहा है कि उन्होंने तालिबान को बढ़ावा दिया है।
आधिकारिक तौर पर पाकिस्तान ने कहा है कि वह अफगानिस्तान में व्यापक आधार वाली समावेशी सरकार चाहता है। पाकिस्तान शांतीपूर्ण वार्ता के लिए अफगान नेताओं की मेजबानी भी कर रहा है। हालांकि पाकिस्तान पर ऐसे आरोप लग रहे हैं कि तालिबान को बड़ी संख्या में हथियार, सुविधाएं और फंडिंग पाकिस्तान ने ही मुहैया कराई है।
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