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पाकिस्तान एकबार फिर अमेरिका के आगे झुक गया है। पाकिस्तान ने अफगानिस्तान में तालिबान आतंकियों से निपटने के लिए अमेरिकी लड़ाकू विमानों को अपने हवाई क्षेत्र के इस्तेमाल की इजाजत दे दी है। जबकि कुछ दिन पहले ही पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने संसद को आश्वासन दिया था कि पाकिस्तान अमेरिका को अफगानिस्तान में ड्रोन ऑपरेशंस के लिए अपना कोई सैन्य अड्डा या एयरबेस नहीं दे रहा है।
पाकिस्तान के कई पत्रकारों ने सोशल मीडिया पर खुलासा किया कि 20 साल पुरानी व्यवस्था को बहाल करते हुए पाकिस्तान ने अमेरिका को अपने हवाई क्षेत्र के इस्तेमाल की इजाजत दे दी है। दक्षिणी अफगान प्रांत हेलमंद में तालिबान बलों पर बमबारी करने के लिए अमेरिकी एयरफोर्स द्वारा पाकिस्तान के हवाई क्षेत्र का इस्तेमाल करते देखा गया।पत्रकारों का दावा है कि पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत के आसमान पर अमेरिकी सैन्य हवाई अभियान फिर से शुरू हुआ है। अमेरिका ने शम्सी एयरबेस के इस्तेमाल को लेकर पाकिस्तान से अनुरोध किया था। यह एयरबेस ग्वादर के चीनी संचालित अरब सागर बंदरगाह से 400 किमी उत्तर-पश्चिम में स्थित है।पाकिस्तान के सैन्य तानाशाह परवेज मुशर्रफ ने अमेरिकी सैनिकों द्वारा 2002 में अफगानिस्तान पर कब्जा किए जाने के बाद पाकिस्तान के शम्सी और दक्षिणी प्रांत जकोबाबाद में अपने एयरबेस के इस्तेमाल की इजाजत दी थी। परवेज मुशर्रफ ने 2006 में प्रकाशित अपने संस्मरण 'द लाइन ऑफ फायर' में इसका खुलासा किया था। मुशर्रफ ने पाकिस्तान के राष्ट्रपति पद पर रहते हुए यह किताब लिखी थी।पाकिस्तान के पत्रकार टॉम हुसैन ने साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट में लिखे एक लेख में दावा किया कि 2008 में मुशर्रफ के सत्ता से हटने के बाद भी अमेरिका की सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी (CIA) पाकिस्तान के शम्सी एयरबेस का दिसंबर 2011 तक इस्तेमाल करती रही। पूर्वी अफगानिस्तान की सीमा से लगे उत्तर और दक्षिण वजीरिस्तान कबायली क्षेत्र में तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान और अल-कायदा के खिलाफ हमलों को अंजाम देने वाले ड्रोन के रखरखाव के लिए इस एयरबेस का इस्तेमाल किया जा रहा था।पाकिस्तान सरकार ने 2011 में तब इसका खुलासा किया जब अमेरिकी सैनिकों से अफगानिस्तान सीमा पर संघर्ष में पाकिस्तान के अपने ही 24 जवान मारे गए। पत्रकार टॉम हुसैन ने दो उच्च पदस्थ अधिकारियों से ऑफ रिकॉर्ड बातचीत के हवाले से बताया कि पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा और अमेरिका रक्षा मंत्रालय के नेताओं के बीच अचानक हुई बैठक में शम्सी एयरबेस के इस्तेमाल का अनुरोध किया गया था। इस सिलसिले में पाकिस्तान और अमेरिका के बीच मार्च में बातचीत शुरू हुई थी।असल में, अमेरिका अफगानिस्तान से इस साल 11 सितंबर तक नाटो और अपने सैनिकों की वापसी के बाद भी पड़ोसी देशों की जमीन से तालिबान पर निगरानी रखना चाहता है। इसलिए वह अफगानिस्तान के पड़ोसी देशों से उनके हवाई अड्डों के इस्तेमाल की इजाजत मांग रहा है। अमेरिका ने उज्बेकिस्तान और ताजिकिस्तान से उनके एयरबेस के इस्तेमाल की इजाजत मांगी थी, लेकिन दोनों देशों ने इससे मना कर दिया। अमेरिकी बलों ने हाल ही में दक्षिणी और पूर्वी अफगानिस्तान में हवाई अड्डों को खाली कर दिया, जिससे तालिबान के खिलाफ अभियान चलाने की उनकी क्षमता कमजोर पड़ गई।पाकिस्तान की मीडिया और विपक्षी दलों को भी इस मसले को नजरअंदाज करते हुए देखा गया। लेकिन पाकिस्तान में हलचल तब मची जब हिंद-प्रशांत मामलों के लिए अमेरिकी सहायक रक्षा सचिव डेविड एफ. हेलवे ने पाकिस्तानी एयरबेस के इस्तेमाल के बारे में खुलासा किया। डेविड एफ. हेलवे ने 21 मई को सीनेट की सशस्त्र बलों की समिति को ब्रीफिंग में बताया कि पाकिस्तान ने अमेरिकी सेना के लॉजिस्टिक समस्या का समाधान कर दिया है। पाकिस्तान ने अफगानिस्तान में अमेरिकी सैन्य मौजूदगी को बनाए रखने के लिए अपने हवाई क्षेत्र में उड़ान भरने की इजाजत दे दी है।डेविड एफ. हेलवे के बयान ने पाकिस्तान में उन अटकलों को हवा दी कि अमेरिका को एक या एक से अधिक हवाई अड्डों को पट्टे पर देने से जुड़ी एक गुप्त डील को दोनों पक्षों ने फाइनल किया है। जब इस मसले पर हंगामा हुआ तो पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता जाहिद हफीज चौधरी ने 24 मई को इन अटकलों को सिरे से नकार दिया। जाहिद हफीज चौधरी ने कहा, 'पाकिस्तान में कोई अमेरिकी सेना या एयरबेस नहीं है; न ही ऐसे कोई प्रस्ताव है। इस बारे में कोई भी अटकल निराधार और गैर-जिम्मेदाराना है और इससे बचना चाहिए।'जाहिद हफीज चौधरी ने यह भी कहा कि पाकिस्तान ने 2001 के एक समझौते के तहत अमेरिका को हवाई क्षेत्र और एयरबेस मुहैया कराता रहा है। पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि लेकिन इस संबंध में अमेरिका से कोई नया समझौता नहीं हुआ है।तालिबान ने पिछले हफ्ते अफगानिस्तान और खासकर पाकिस्तान को अपने एयरबेस को अमेरिकी इस्तेमाल के लिए दिए जाने को लेकर परिणाम भुगतने की चेतावनी दी। तालिबान ने 28 मई को जारी बयान में कहा, अफगानी लोग अंतरराष्ट्रीय समुदाय से जुड़ना चाहते हैं, लेकिन पड़ोसी और पाकिस्तान यह जान लें कि वो अमेरिका के गंदे खेल का हिस्सा न बनें। वरना वे कभी अच्छे दिन नहीं देख पाएंगे।अमेरिकी लड़ाकू विमानों को अपने हवाई क्षेत्र के इस्तेमाल की अनुमति दिए जाने को पाकिस्तान की नीति में दूसरे बड़े बदलाव के तौर पर देखा जा रहा है। आर्मी चीफ कमर जावेद बाजवा ने फरवरी में खुलासा किया था कि अफगानिस्तान में भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा से पाकिस्तान की राष्ट्रीय सुरक्षा नीति का ध्यान हटाने की योजना है। उन्होंने बताया कि पाकिस्तान की योजना यूरेशिया के साथ कारोबारी रिश्तों को आगे बढ़ाना है। पाकिस्तान ने इस दिशा में कदम उठाते हुए भारत के साथ अपने संबंधों को सामान्य बनाने में लगा हुआ है।पाकिस्तान ने अमेरिका से अफगानिस्तान में तालिबान की भूमिका को कम करने की मांग की है। इस्लामाबाद में पाकिस्तानी अधिकारियों और तालिबान के वार्ताकारों के बीच हुई बातचीत के बावजूद तालिबान ने हमला बंद करने से इनकार कर दिया था। तालिबान ने अफ़ग़ान सरकार के नेतृत्व वाले वार्ताकारों के साथ राजनीतिक समझौते पर बातचीत में फिर से शामिल होने से भी इनकार कर दिया है। इन सब के बीच पाकिस्तान वैश्विक स्तर पर आर्थिक रिश्तों को आगे बढ़ाने की दिशा में प्रयास कर रहा है।कैलिफोर्निया स्थित स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा और सहयोग केंद्र में पोस्टडॉक्टरल फेलो असफंदयार मीर कहते हैं, “बाइडन प्रशासन को अफगानिस्तान में सबसे खराब स्थिति से बचने की जरूरत है: अफगानिस्तान में अभी तालिबान का असर है। अगर आतंकी संगठन अपना दबदबा कायम करने में कामयाब होता है तो यह अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडन के लिए बहुत शर्मनाक होगा, यहां तक कि उन्हें इसकी राजनीतिक कीमत भी चुकानी पड़ सकती है।”दरअसल, अगर अमेरिका की अपनी कूटनीति विफल होती है तो यह पाकिस्तान के लिए भी झटका होगा। लिहाजा, पाकिस्तान तालिबान को रोकने के लिए अमेरिका की मदद करने को मजबूर है। असफंदयार मीर कहते हैं कि तालिबान के खतरे को रोकने के लिए सावधानी से कदम उठाने की जरूरत है। असफंदयार मीर ने कहा, 'बाजवा ने पिछले कुछ वर्षों में कई घरेलू राजनीतिक और विदेश नीति के मुद्दों पर कड़ा रुख अपनाया है, इसलिए वह तालिबान की धमकी से प्रभावित नहीं होंगे। अगर वह अमेरिका के साथ व्यापार करना चाहते हैं, तो वह तालिबान और किसी भी संभावित घरेलू प्रतिक्रिया से निपटने का उपाय तलाशेंगे।'विश्लेषकों का मानना है कि कई मोर्चों पर अमेरिकी समर्थन हासिल करने के लिए पाकिस्तान एयरबेस को इस्तेमाल करने की अनुमति देने जैसे कठिन फैसले कर रहा है। वाशिंगटन स्थित थिंक टैंक द विल्सन सेंटर के वरिष्ठ दक्षिण एशिया सहयोगी माइकल कुगेलमैन ने कहा, "पाकिस्तान के पास वॉशिंगटन के साथ अपने संबंधों को मजबूत करने का यह अवसर है। पाकिस्तान सुरक्षा सहायता बहाल किए जाने के प्रयास में लगा हुआ है। वह अफगानिस्तान और कश्मीर को लेकर भारत पर अमेरिका दवाब डालने के लिए भी यह सब कर रहा है।"कुगेलमैन का मानना है कि बाइडन प्रशासन पाकिस्तान के साथ काम करना चाहता है, मगर उसका दायरा सीमित होगा। उन्होंने कहा, "अमेरिका अफगान में शांति पर सहयोग की तलाश कर रहा है। वह आतंकवाद का मुकाबला करना चाहता है, लेकिन अमेरिका व्यापार और निवेश के मोर्चे पर सहयोग बढ़ाने की पाकिस्तान की मुहिम को ठंडे बस्ते में डालना चाहता है।"
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