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NASA ने दावा किया है कि उसें चांद के साउथ पोल पर पानी नजर आया जिसी खोज उसका चंद्रयान 11 साल पहले कर चुका है। नासा के अनुसार चंद्रमा पर पर्याप्त रूप से पानी है। यह पृथ्वी से दिखने वाले साउथ पोल के एक गड्ढे में अणुओं के रूप में नजर आया है। इस खोज से वैज्ञानिकों को भविष्य में चांद पर इंसानी बस्ती बनाने में मदद मिल सकती है। हालांकि, भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी ISRO का चंद्रयान-1 ग्यारह साल पहले 2009 मे ही चंद्रमा पर पानी होने के सबूत दे चुका है।
चांद पर पानी की ताजा खोज NASA की स्ट्रैटोस्फियर ऑब्जरवेटरी फॉर इंफ्रारेड एस्ट्रोनॉमी (SOFIA) ने की है। यह पानी सूरज की किरणें पड़ने वाले इलाके में मौजूद क्लेवियस क्रेटर में मिला है।
NASA के मुताबिक चांद की सतह के पिछले परीक्षणों के दौरान हाइड्रोजन की मौजूदगी का पता चला था, लेकिन तब हाइड्रोजन और पानी के निर्माण के लिए जरूरी अवयव हाइड्रॉक्सिल (OH) की गुत्थी नहीं सुलझा पाए थे। अब पानी मौजूद होने की पुष्टि हो चुकी है। NASA ने अपनी खोज के नतीजे नेचर एस्ट्रोनॉमी के नए अंक में जारी किए हैं।
SOFIA ने चंद्रमा की सतह पर जितना पानी खोजा है उसकी मात्रा अफ्रीका के सहारा रेगिस्तान में मौजूद पानी से 100 गुना कम है। चांद पर पानी कम मात्रा में होने के बावजूद सवाल उठ रहे हैं कि चांद पर वायुमंडल नहीं है फिर भी पानी कैसे बना?
22 अक्टूबर 2008 को लॉन्च किए गए भारतीय मिशन चंद्रयान-1 ने भी चांद पर पानी होने के सबूत दिए थे। यह पानी चंद्रयान-1 पर मौजूद मून इंपैक्ट प्रोब ने तलाशा था। इसे ऑर्बिटर के जरिए नवंबर 2008 में चंद्रमा के साउथ पोल पर गिराया गया था। सितंबर 2009 में ISRO ने बताया कि चांद की सतह पर पानी चट्टान और धूलकणों में भाप के रूप में फंसा है, यानी पानी काफी कम है।
चंद्रयान-1 के साथ मून इंपैक्ट प्रोब भेजने का आइडिया पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने दिया था। उनका कहना था कि जब चंद्रयान ऑर्बिटर चांद के इतने करीब जा ही रहा है कि तो क्यों न इसके साथ एक इम्पैक्टर भी भेजा जाए। इससे चांद के बारे में हमारी खोज को विस्तार दिया जा सकेगा।
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