एक तरफ मायावती (Mayawati) ब्राह्मण-दलित गठजोड़ (Brahmin-Dalit alliance) मुद्दे को जोर-शोर से उठा रही हैं। वहीं मायावती इसके बावजूद भी खुद की सरकार आने का दावा करते नहीं थक रही हैं। जबकि दल के बड़े नेता पार्टी से किनारा कर दूसरे दलों की ओर रुख कर रहे हैं। इससे आने वाले चुनाव में इनकी वोट बैंक पिछले विधानसभा से भी नीचे खिसकने के आसार बढ़ते जा रहे हैं।

उत्तर प्रदेश में अब तक बसपा के 11 विधायक दूसरे भाजपा (11 BSP MLAs have so far switched to another BJP or SP) अथवा सपा में जा चुके हैं। बसपा के मजबूत नेता मानें जानें वाले राम अचल राजभर भी रैलि में दमदार प्रदर्शन दिखाकर अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) के साथ जा चुके हैं। अभी भी दल से कई नेता पाला बदलने की फिराक में लगे हुए हैं। इससे चुनाव आते-आते तो दोनों पार्टियां एक तरह से नेता विहीन की स्थिति में आ जाएंगे।

उत्तर प्रदेश चुनाव (Uttar Pradesh elections) में मायावती अपने कोर वोट पर टिकी हुई हैं। लेकिन उनके कोर वोटर्स से जुड़े काफी प्रमुख नेताओं ने उनका साथ इसी चुनाव में छोड़ दिया। वहीं जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहा है. वैसे-वैसे ग्राफ नीचे की ओर खिसकता हुआ दिख रहा है। राजनीति में कब क्या होगा, यह तो कुछ कहा नहीं जा सकता, लेकिन इतना जरूर है कि अभी बसपा की स्थितियां ठीक नहीं हैं।

इन चुनाव से पहले जीतने भी चुनाव हुए उसमें मायावती पर करोड़ो रु लेकर टिकट देने का आरोप लगता रहा है। जबकि इस बार हर नेता एक व्यक्ति विशेष का दबदबा होने का आरोप लगा रहा। ऐसे में जो दलित वर्ग में एक विशेष जाति बसपा की तरफ ही रहता था, वह भी खिसकता जा रहा है। इस वोट बैंक को भाजपा अपनी तरफ मोड़ने में लग गई है। यदि बसपा के खिसके वोट को भाजपा खुद लेने में सफल हो जाती है तो फिर आने वाले चुनाव में उसका ग्राॅफ काफी बढ़ सकता है।

यह बता दें कि गुड्डू जमाली के बसपा छोड़ने के बाद वहां ज्यादा हड़कंप मचा हुआ। बसपा अब तक जमाली के भरोसे मुस्लिम समुदाय को अपने से जोड़ने के लिए प्रयोग करने वाली थी लेकिन उसके पास अब कोई वैसा मुस्लिम चेहरा नहीं बचा है। पार्टी छोड़ने का सिलसिला कहां जाकर थमेगा, यह कहना कठिन है। अब तक पार्टी असलम, चौधरी, मो. मुजतबा, असलम राइनी, सुषमा पटेल, डाॅ. हरगोविंद भार्गव, और हाकिम लाल बिंद ने बसपा छोड़कर सपा का दामन थाम लिया है। वहीं वंदना सिंह बसपा छोड़कर भाजपा जा चुकी हैं। रामअचल राजभर और लाल जी वर्मा का बसपा से निष्कासन ही हो गया। मुख्तार अंसारी को पहले ही टिकट न देने का बसपा ने फैसला किया है।