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कोलकाता उच्च न्यायालय (Kolkata High Court) ने अपने एक फैसले में राज्य सरकार से एक नेपाली नागरिक (Nepali citizens) को बिना मुकदमे के 41 साल तक सलाखों के पीछे रखने के लिए मुआवजे के रूप में 5 लाख रुपये का भुगतान देने को कहा है। एक मानवाधिकार संगठन की पहल से ये मामला सामने आने के बाद कोलकाता उच्च न्यायालय (Kolkata High Court) ने इसमें हस्तक्षेप किया और इस साल न्यायालय ने मार्च में व्यक्ति को रिहा कर दिया। दुर्गा प्रसाद तिम्सीना उर्फ दीपक जोशी नाम के इस शख्स को 12 मई 1980 में दार्जीलिंग जिले से कथित तौर पर एक हत्या (Murder case) के मामले में शामिल होने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था।
जनवरी 1980 में बीस वर्षीय दीपक सरसों बेचने के लिए इलम के मगलबरे बाजार में गया था। युवक लुंबक गांव का निवासी है। युवक के परिवार को उस दिन के बाद से उसके बारे में पता नहीं चला, उन्होंने तब युवक की काफी खोजबीन भी की थी। बाद में पता चला कि वह दार्जीलिंग गया हुआ है, जहां वह काम कर रहा है। लेकिन, वहां उन्हें एक महिला की हत्या (Women murder in Darjeeling) के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। अदालत के रिकॉर्ड के अनुसार, वह दार्जीलिंग गया था क्योंकि एक व्यक्ति ने उसे सेना में नौकरी देने का वादा किया था, लेकिन जिस व्यक्ति ने उसे नौकरी देने का वादा किया था, उसने उसे वहां हत्या के मामले में आरोपी बना दिया। तब से उसे विभिन्न जेलों में कैद कर रखा गया था।
उसने जेल में अपना पूरा जीवन बिताया, इस दौरान एक कैदी ने उससे उसकी स्थिति के बारे में जानना चाहा तब युवक ने उसको मामले के बारे में बताया। दमदम सेंट्रल जेल (Dumdum Central Jail) में बंद एक अन्य कैदी ने अपने दोस्तों को दुर्गा प्रसाद के बारे में बताया। उसके दोस्त वर्ड एचएएम रेडियो ऑपरेटरों तक पहुंचे, जिन्होंने नेपाल रेडियो क्लब (Nepal Radio Club) से संपर्क किया। क्लब के सदस्यों ने युवक के परिवार को खोजना शुरू किया तब अंत में पूर्वी नेपाल के लुंबक गांव में उसके परिवार का पता लगा। युवक के परिवार ने नेपाली दूतावास (Nepalese Embassy) से संपर्क किया और अनुरोध किया कि उसे अपने बेटे से मिलाया जाए।
पश्चिम बंगाल राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण ने युवक की मानसिक स्वास्थ्य स्थिति का मूल्यांकन किया। बाद में पता चला कि युवक का आईक्यू स्तर 10 साल के बच्चे के बराबर है। 2021, अप्रैल में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश थोट्टाथिल बी राधाकृष्णन और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध रॉय की खंडपीठ ने मामले का स्वत: संज्ञान लेते हुए निर्देश दिया था कि दुर्गा प्रसाद को उनके रिश्तेदार प्रकाश चंद्र शर्मा टिमसिना को सौंप दिया जाए और नेपाली वाणिज्य दूतावास (Nepalese Consulate) की मदद से उनकी वापसी के लिए सुविधा प्रदान की जाए। कोलकाता उच्च न्यायालय ने तब पश्चिम बंगाल सरकार (Government of West Bengal) से उन्हें मुआवजा/नुकसान देने पर अपनी प्रतिक्रिया प्रस्तुत करने को कहा। 7 दिसंबर को उच्च न्यायालय के वकील ने पश्चिम बंगाल सुधार सेवा कैदियों (अप्राकृतिक मृत्यु मुआवजा) योजना, 2019 का हवाला देते हुए कहा कि योजना के तहत देय अधिकतम मुआवजा 5 लाख रुपये है।
राज्य के वकील ने इस तथ्य पर वाद-विवाद नहीं किया और उन्होंने प्रस्तुत किया कि राशि नेपाल के वाणिज्य दूतावास के माध्यम से दीपक जोशी के खाते में जमा की जा सकती है, जो वर्तमान में अपने परिवार के सदस्यों के साथ नेपाल में है। इसलिए, मुख्य न्यायाधीश प्रकाश श्रीवास्तव और न्यायमूर्ति राजर्षि भारद्वाज की खंडपीठ ने प्रतिवादी/राज्य को छह सप्ताह की अवधि के दौरान कानून की उचित प्रक्रिया का पालन करते हुए दीपक जोशी के खाते में राशि स्थानांतरित करके पांच लाख रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया।
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