जिंदगी की एहमियत कोरोना ने तो सीखा ही दी है। इंसान लालच में आकर प्रकृति तबाह करने पर तुला हुआ है। इसी तरह पेड़ को खत्म कर खुद अपने आप को ही इंसान खत्म कर रहा है। जिंदगी को बचाने के लिए पेड़ों का होना जरूरी है। लालच और जिंदगी की एक लड़ाई मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में चल रही है। यहां 2 लाख से भी ज्यादा पेड़ों की जमीन पर 3 करोड़ के डायमंड या हीरे हैं। हीरों को पाने के लिए  2 लाख से भी ज्यादा  पेड़ों को खत्म करना होगा।


3.42 करोड़ कैरेट के हीरे और 382.131 हेक्टेयर जंगल


इस कारण से इस डायमंड प्रोजेक्ट का विरोध किया जा रहा है। पर्यावरण प्रेमी किसी भी कीमत पर बचाना चाहते हैं। पर्यावरण प्रेमी पहले भी इन पेड़ों को बचाने के लिए अड़ गए थे और सालों काम करने के बाद कंपनी को वापस जाना पड़ा था। बता दें कि बकस्वाहा में देश का सबसे बड़ा हीरा भंडार पाया गया है जहां 3.42 करोड़ कैरेट के हीरे हैं। इन हीरों को पाने के लालच में कई कंपनियां और सरकार 382.131 हेक्टेयर जंगल को तबाह करना चाहती है।

2,15,875 पेड़ों में जैव विविधता है जिसमें पीपल, सागौन, जामुन, बहेड़ा, तेंदू जैसे अनगिनत पेड़ हैं। सबसे बड़ी वजह ये है कि इस जंगल पर निर्भर हजारो आदिवासी यहां रहते हैं। उनका जीवन पेड़ों के खत्म करने से तहस हो जाएगा। हीरे प्रोजेक्ट का विरोध कर रहे पर्यावरण प्रेमी रणवीर पटेरिया ने कहा कि “बकस्वाहा में कई आदिवासी परिवार रहते हैं. इनकी आजीविका का साधन ये जंगल ही है, ये आदिवासी महुआ और अन्य जंगली चीजों को बीनकर बेचते हैं और महीने का करीब ढाई हजार कमा लेते हैं”।

आदिवासियों का कहना है जंगल नहीं हो हम नहीं और प्राकृतिक ऑक्सीजन नहीं तो हम सब खत्म। पर्यावरण प्रेमी अमित भटनागर का कहना है कि जंगल खत्म होने से प्राकृतिक ऑक्सीजन खत्म हो जाएगी। सुप्रीम कोर्ट में भी याचिका लगी हुई है और सोशल मीडिया पर ‘सेव बक्सवाहा फॉरेस्ट' कैंपन चल रहा है। मुहिम से सरकार को जगाने का काम किया जा रहा है।  पेड़ नहीं बचेंगे तो लाखों लोगों की जीवन नष्ट हो जाएगा।