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केरल हाई कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा है कि बैंक इस आधार पर छात्रों को एजुकेशनल लोन देने से इंकार नहीं कर सकते हैं कि उनके माता-पिता का आर्थिक स्थिति कमजोर है। हाई कोर्ट ने इस मामले में बैंक को निर्देश दिए कि वह होनहार छात्रा को तत्काल लोन का भुगतान करे। इस दौरान कोर्ट ने कहाकि एजुकेशन लोन का मकसद ही यही है कि मेहनती छात्र-छात्राएं पैसे के अभाव में पढ़ाई से वंचित न रह जाएं।
मामले में याचिकाकर्ता आयुर्वेद मेडिसिन और सर्जरी की छात्रा है। एजुकेशनल लोन का आवेदन अस्वीकार होने के बाद उसने कोर्ट का रुख किया था। याचिका में उसने कहाकि साल 2019 में नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट में रैंक के आधार पर सेंट्रलाइज्ड सीट एलॉटमेंट प्रक्रिया के तहत साल 2019 में एडमिशन लिया था।
चूंकि उसका परिवार पढ़ाई का खर्च उठा पाने में सक्षम नहीं था इसलिए उसने 7.5 लाख रुपए के लोन के लिए बैंक में आवेदन किया था। एजुकेशन लोन में इस रकम के लिए किसी तरह के सिक्योरिटी की जरूरत नहीं होती। इसके बावजूद बैंक ने यह कहते हुए लोन देने से मना कर दिया कि छात्रा के परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है, इसलिए लोन नहीं दिया जा सकता। गौरतलब है कि छात्रा के पिता का छोटा सा बिजनेस था, लेकिन कोरोना महामारी के दौरान वह भी बंद हो गया। इसलिए बैंक का कहना था कि वह लोन नहीं चुका पाएंगे।
कोर्ट ने कहा कि इस तरह से तो एजुकेशनल लोन स्कीम का उद्देश्य ही पूरा नहीं हो सकेगा। कोर्ट ने कहाकि आरबीआई के दिशानिर्देशों के मुताबिक एजुकेशनल लोन का मकसद ही यही है कि पैसे की कमी के चलते किसी प्रतिभाशाली छात्र की पढ़ाई बाधित नहीं होनी चाहिए।
जस्टिस पीबी सुरेश कुमार की सिंगल बेंच कोर्ट ने कहाकि अगर बैंक इस तरह का रवैया अपनाएंगे तो एजुकेशनल लोन स्क्रीम का उद्देश्य पूरा नहीं हो पाएगा। इसके बाद कोर्ट ने कहाकि बैंक की शर्तें स्वीकार्य नहीं हैं और होनहार छात्रा को लोन का भुगतान किया जाना चाहिए।
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