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सुप्रीम कोर्ट की तरफ से अयोध्या विवाद का फैसला करते हुए जमीन रामलला विराजमान को दे दी गई है। लेकिन इस मामल में रामलला विराजमान की ओर से पैरवी करने वाले एक वरिष्ठ वकील ने अहम भूमिका निभाई है। ये वकील हैं के. पराशरण जिनको देवताओं के वकील भी कहा जा रहा है। उनकी आखिरी ख्वाहिश है कि उनके जीते जी रामलला कानूनी तौर पर विराजमान हो जाएं। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद उन्होंने राहत की सांस ली है।
90 वर्ष से अधिक उम्र को हो चुके पराशरण में गजब की ऊर्जा है जिस वजह से उनको भारतीय वकालत का 'भीष्म पितामह' भी कहा जाता है। 92 साल के होने के बावजूद के पराशरण ने 40 दिन तक घंटों चली कोर्ट की सुनवाई में पूरी शिद्दत से दलीलें पेश कीं और जीत कर ही माने।
सुनवाई के दौरान न्यायालय में पराशरण को बैठकर दलील पेश करने की सुविधा भी दी थी लेकिन उन्होंने यह कहकर इनकार कर दिया कि वो भारतीय वकालत की परंपरा का पालन करेंगे और खड़े होकर ही दलीलें पेश की। पराशरण को भारतीय इतिहास, वेद पुराण और धर्म के साथ ही संविधान का व्यापक ज्ञान है।
आपको बता दें कि राम सेतु मामले में दोनों ही पक्षों ने उन्हें अपनी ओर करने के लिए सारे तरीके आजमाए लेकिन धर्म को लेकर संजीदा रहे पराशरण सरकार के खिलाफ लड़े। इसके बाद उन्होंने सेतुसमुद्रम प्रॉजेक्ट से रामसेतु को बचाने के लिए किया। 9 अक्टूबर 1927 को जन्मे पराशरण राज्यसभा सदस्य और 1983 से 1989 के बीच भारत के अटॉर्नी जनरल भी रहे। उनको पद्मभूषण और पद्मविभूषण से नवाज जा चुका है। वो प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में संविधान के कामकाज की समीक्षा के लिए ड्राफ्टिंग ऐंड एडिटोरियल कमिटी में भी शामिल रहे।
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