आईएनएस तारिणी से समुद्र के रास्ते दुनिया को नापने के लिए निकलीं लड़कियों की टीम आज भारत लौटेगी। खुद रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण इनका स्वागत करेंगी। इन छह महिला अफसरों की टीम ने पिछले साल 10 सितंबर को अपना सफर शुरु किया था। लेफ्टिनेंट कमांडर वर्तिका जोशी की अगुवाई वाली टीम ने 26 हजार समुद्री मील का सफर तय किया। कभी 140 किमी की रफ्तार वाली हवाओं ने रास्ता रोका, तो कभी 10-10 मीटर ऊंची लहरों ने, लेकिन लड़कियों का हौसला डिगा नहीं। सफर पूरा किया। टीम आज भारत वापस आ रही है।

 

लेफ्टिनेंट कमांडर वर्तिका जोशी ने बताया कि लड़का हो या लड़की, समंदर अलग ट्रीटमेंट नहीं देता। 55 फुट की बोट पर सवार होकर हम समंदर की लहरों पर निकले थे। ट्रेनर कमांडर दिलीप डोंडे ने एक नसीहत दी थी, जो पूरे सफर में काम आई। उन्होंने कहा था कि बोट पर चढऩे से पहले अपना जेंडर बाहर छोड़कर जाना। नाव और समंदर ये नहीं जानता कि तुम लड़की हो या लड़का। तुम्हारे साथ अलग ट्रीटमेंट नहीं करेगा। बस जबसे ये सोच लियाए सफर आसान हो गया। 

उन्होंने बताया कि बोट का व्हील संभालताए उसके हाथ की उंगलियां जम जाती थीं। 140 किलोमीटर की रफ्तार से हवाएं चलती थीं। 10 मीटर ऊंची लहरें उठती थीं। बोट हिचकोले खा रही थी, लेकिन हौसला नहीं खोया। दक्षिण अफ्रीका के पास केप ऑफ  होर्न में तो लगातार 3 दिन तूफान में फंसे रहे। मौसम बेहद ठंडा था। बोट पर हमें सफाई, खाना पकानाए बर्तन मांजना सब खुद ही करना था। साथ में बोट तो कंट्रोल करनी ही थी। टीम वर्क से सब आसान होता गया। एक-दूसरे पर ऐसा भरोसा था कि कभी एक इंसान काम करता तो दूसरा बोट संभालता। ऐसा सभी बारी-बारी करते। कई बार तो 3-3 दिन तक हमारी आपस में बात ही नहीं होती थी। फिर भी हम जानते थे कि बोट की और हमारी क्या जरूरतें हैं। 

उन्होंने आगे बताया कि सफर में जहां भी पड़ाव आया, हिंदुस्तानी लोग हमसे मिलने आए। सबने हमारी हिम्मत को सराहा। कई लोगों ने कहा कि वो अपने बच्चों को ऐसे काम के लिए भेजने की हिम्मत कभी नहीं जुटा पाते। अब वक्त है कि महिलाओं की जंगी पोत पर भी तैनाती होनी चाहिए, लेकिन इसके लिए वातावरण तैयार करना होगा। हर 7 से 10 दिन में हमारा टाइम जोन बदल जाता था। बदले हुए टाइम जोन के हिसाब से हमें बार-बार अपनी घड़ी भी एडजस्ट करनी पड़ती थी। कभी उम्र में एक दिन जुड़ जाता, कभी एक दिन कम हो जाता। ये हमारे लिए जिंदगी की अहमियत से जुड़ा सबक भी था। टीम ने पानी के बीच रहकर पानी की भी अहमियत समझी। एक बार तो पानी खत्म हो गया। बारिश का पानी जुटाया। उसे उबाला और उससे काम चलाया। अब यहां से जाकर हम समुद्र की शांति को मिस करेंगे। रात के समय किनारे पर खड़े होकर कभी हंसते, कभी समंदर को तो कभी तारों से लबरेज आसमान को निहारते। ऐसे में सब चुप हो जाती थीं। मौन बोलता था। 


ये है टीम: टीमरू लेफ्टिनेंट कमांडर वर्तिका जोशी ( उत्तराखंड ), ले. कमांडर प्रतिभा जामवाल (हिमाचल), ले. कमांडर पी स्वाति ( विशाखापत्तनम),  ले एश्वर्या बोड्डापटी ( हैदराबाद),  ले. विजया देवी ( मणिपुर) ले. पायल गुप्ता (उत्तराखंड )