UP समेत अगले साल देश के कई राज्यों में विधान सभा चुनाव होने जा रहे हैं जिनमें गुजरात भी शामिल है। लेकिन इससे पहले बीजेपी बहुत बड़ी चाल खेल दी है जिसके तहत वो यूपी समेत कई राज्यों में एकबार फिर अपनी सरकार बनाने में कामयाब हो सकती है। इसका पहला उदाहरण ये आया है कि आज गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत से मुलाकात के बाद मुख्यमंत्री विजय रुपाणी ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। इस दौरान उन्होंने कहा कि पार्टी में समय के साथ दायित्व बदलते रहते हैं। बीजेपी में यह स्वभाविक प्रक्रिया है। ऐसे में सवाल कि आखिर क्या कारण रहे हैं, जिसके चलते विजय रुपाणी को सीएम की कुर्सी छोड़नी पड़ी।

विजय रुपाणी को साल 2016 में तत्कालीन मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल को हटाकर गुजरात के सत्ता की कमान सौंपी गई थी। 2017 का विधानसभा चुनाव बीजेपी ने विजय रुपाणी के नेतृत्व में लड़ा था, लेकिन यह चुनाव जीतने में बीजेपी को बड़ी मशक्कत करनी पड़ी थी। गुजरात में अगले साल आखिर में विधानसभा चुनाव होने हैं, जिसके लिए बीजेपी अपने आपको को मजूबत करने में जुट गई है।

बीजेपी आगामी 2022 के विधानसभा चुनाव में अपनी जीत को सुनिश्चित करने और दोबारा से सत्ता में वापसी करना चाहती है। ऐसे में केंद्रीय संगठन महामंत्री बीएल संतोष शनिवार को अचानक गांधी नगर पहुंचे, जहां उन्होंने प्रदेश अध्यक्ष सीआर पाटिल और प्रदेश प्रभारी रत्नाकर के साथ बैठक की। इसी के बाद विजय रुपाणी राज्यपाल के अपना इस्तीफा देने के लिए पहुंचे। रूपाणी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी का आभार जताते हुए कहा कि पार्टी उन्हें जो भी जिम्मेदारी सौंपेगी है उसे पूरा करेंगे।

विजय रुपाणी पांच साल तक गुजारत के मुख्यमंत्री पद पर रहने के बावजूद राजनीतिक तौर पर अपना सियासी प्रभाव नहीं जमा सके। 2017 में भले ही विजय रुपाणी चेहरा रहे हैं, लेकिन चुनाव नरेंद्र मोदी के दम पर बीजेपी जीती थी। मोदी-शाह को काफी मशक्कत करनी पड़ी थी, लेकिन बंगाल चुनाव में मिली हार के बाद से बीजेपी ने तय किया कि राज्यों में अपने चेहरे को मजबूत करेगी। इसी का नतीजा है कि उत्तराखंड, कर्नाटक के बाद अब गुजरात में सीएम बदला है ताकि 2022 के चुनाव में मजबूत चेहरे के सहारे कमल खिला सके।

विजय रुपाणी की खामोशी के साथ काम करना पसंद करते हैं। 5 साल से बिना प्रचार और विवाद में आए काम कर रहे थे, लेकिन रुपाणी की यही ताकत उनकी सियासी कमजोर कड़ी के रूप में साबित हुई। लाइम लाइट से दूर रह कर काम करने के चलते ही रुपाणी अपना सियासी प्रभाव नहीं जमा सके और बीजेपी के एक छत्रप नेता के तौर पर खुद की पहचान नहीं बना सके। ऐसे में बीजेपी को अब राज्य में मजबूत नेतृत्व की जरूरत है, जिसके दम पर राज्य के चुनावी नैया पार हो सके। बीजेपी विधानसभा चुनाव में पीएम मोदी के चेहरे के आगे नहीं करना चाहती है बल्कि राज्य के नेतृत्व के दम पर चुनाव लड़ना चाहती है।

अहमदाबाद में विश्व पाटीदार समाज के सरदार धाम के उद्घाटन के चंद घंटों बाद विजय रूपाणी के इस्तीफे को गुजरात में पाटीदार समाज के पटेल पावर के रूप में देखा जा रहा है। गुजरात में पटीदार समुदाय काफी अहम है, जो सूबे के सियासी खेल बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखता है। राज्य में पाटीदार समाज बीजेपी का परंपरागत वोटर माना जाता है, जिसे साधे रखने के लिए बीजेपी हरसंभव कोशिश में जुटी है। यही वजह है कि गुजरात के मुख्यमंत्री पद की दौड़ में सबसे आगे नितिन पटेल, केंद्रीय मंत्री मनसुख मांडवीया, केंद्रीय मंत्री परसोत्तम रूपाला तथा गुजरात बीजेपी के उपाध्यक्ष गोवर्धन झड़फिया का नाम सबसे अधिक चर्चा में है।

विजय रुपाणी के मुख्यमंत्री पद की कुर्सी जाने में सबसे बड़ी वजह कोविड महामारी बनी। सूबे में कोरोना संकट को निपटने में विजय रूपाणी बहुत बेहतर नहीं रहे हैं, जिसे लेकर विपक्ष ने तमाम सवाल खड़े किए हैं। गुजरात में कोरोना की दूसरी लहर को लेकर जनता के बीच अच्छी खासी नाराजगी देकने के मिल रही थी। कोरोना में बीजेपी सरकार के कामों को लेकर भी खुश नहीं थे। ऐसे में विजय रुपाणी इसे खत्म नहीं कर पा रहे थे।

बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व ने राज्य में सीएम का चेहरा बदलकर सत्ताविरोधी लहर को खत्म करने का दांव माना जा रहा है। कोविड के दौर में बड़ी संख्या में लोगों की मौत हुई है, जिसे लेकर लोगों की बीच सरकार से नाराजगी है। ऐसे में बीजेपी रुपाणी को हटाकर उनके गुस्से को शांत करने की कवायद कर रही है।