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असम में एनआरसी का अंतिम मसौदा जारी करने के बाद 40 लाख लोगों के नाम इस लिस्ट में शामिल नहीं किया गया है। अब यह संभव है कि जिन लोगों के नाम एनआरसी के अंतिम ड्रॉफ्ट में भी नहीं होंगे, उन्हें डिटेंशन सेंटर में रखा जाएगा। ऐसे में यदि 40 लाख विदेशी बाहर हुए तो केंद्र सरकार को एक अलग प्रवासी राज्य बसाना पड़ सकता है। असम में अभी तक छह डिटेंंशन सेंटर हैं जिनमें करीब एक हजार लोग रहते है। ये सेंटर गोलपारा, कोकराझार, सिलचर, जोरहट, तेजपुर और डिब्रूगढ़ में हैं। इस डिटेंशन सेंटर्स में जेल जैसा कानून है।एनआरसी के अपडेट होने के बाद केंद्र ने राज्य को एक और डिटेंशन सेंटर खोलने के लिए कहा है। यह गोलपारा में होगा, जिसमें 3000 लोग रखे जा सकेंगे।
डिटेशन सेंटर बिमारी को घर
मानवाधिकार कार्यकर्ता अब्दुल कलाम आजाद का कहना है कि डिटेंशन सेंटर्स में लोग मानसिक बीमारियों से गुजर रहे हैं। इन विदेशी शरणार्थियों का कभी-कभी तेजपुर के अस्पताल में इलाज भी करवाया जाता है, पर उन्हें पूरी तरह ठीक होने से पहले ही डिटेंशन सेंटर में भेज दिया जाता है। इन सेंटर्स का कामकाज असम के जेल मैन्युअल के अनुसार चलता है। हालांकि जेल अथॉरिटी गोलपारा का कहना है कि वे कैदियों के मानसिक स्वास्थ्य का पूरा ख्याल रखते हैं। बारपेटा जिले के बोहरी निवासी मोईनल मुल्लाह (33) ने तीन साल गोलपारा के डिटेंशन सेंटर में बिताए। उनको 2013 में गिरफ्तार करने के बाद विदेशी करार दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर उसे 3 अगस्त 2016 को डिटेंशन सेंटर से रिहा किया गया। मोईनल कहते हैं कि मैं डिटेंशन सेंटर में रहते हुए इतना परेशान हो गया, जिसे अब शब्दों में बता पाना मुश्किल है। वहां बहुत सारी दिक्कतें थीं। फोन तक नहीं रख सकते हो। कई बार इलाज भी कराया, पर ठीक नहीं हो सका।
महिलाओं की स्थिति
बरपेटा जिले की रेखा बेगम का पहले ड्राफ्ट में नाम था, पर फाइनल ड्रॉफ्ट में नाम नहीं है। 35 वर्षीय रेखा कहती हैं कि 31 जुलाई को ड्राफ्ट में अपना नाम नहीं देखकर मैं हैरान थी, मेरे बच्चे रो रहे थे। वे मुझसे कहने लगे मां यदि आप बांग्लादेश जाएंगी, तो हम भी आपके साथ चलेंगे। मैंने उस रात खाना तक नहीं खाया। हालांकि मेरे माता-पिता, भाई-बहनों, पति और बच्चों के नाम लिस्ट में हैं। मैंने अपने पिता की 1951 एनआरसी की वसीयत और ग्राम पंचायत का सर्टिफिकेट भी लगाया था। पति ड्राइवर हैं। वो जो पैसे कमाते हैं, वह बच्चों की पढ़ाई और खर्च में ही खत्म हो जाता है। यदि मेरा नाम नहीं शामिल किया गया, तो मेरे बच्चे क्या करेंगे।
55 साल की जयमती दास उदलगुरी जिले के निचीलामारी गांव में रहती हैं, यह भारत-भूटान सीमा के नजदीक है। जयमती के पति गोपाल दास ने इस साल जून में सुसाइड कर लिया। दरअसल, उन्हें फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल ने नागरिकता साबित करने के लिए नोटिस भेजा था। जयमती कहती हैं कि मैं इन चीजों से थक चुकी हूं। मैंने अपना पति खो दिया। मैं पहले ही अपने दो बच्चों के साथ यह साबित कर चुकी हूं कि हम भारतीय हैं। पर अब यह फिर से साबित करने को कहा जा रहा है। समझ नहीं आ रहा है कि क्या करूं। वकील केस लड़ने के लिए 15 हजार रुपए मांगते हैं।
काम करने जाते हैं तो बांग्लादेशी बताया जात है
गोलकगंज गांव के 30 वर्षीय सामाजिक कार्यकर्ता इलियास रहमान कहते हैं कि हमारा गांव भारत-बांग्लादेश बॉर्डर पर है, इसलिए हम पर बांग्लादेशी होने का ठप्पा लगा हुआ है। यदि गांव के लोग राज्य में किसी दूसरी जगह काम ढूंढ़ने जाते हैं तो उन्हें उनकी बोली और पहनावे के कारण बांग्लादेशी पुकारा जाता है। भारतीय होने के बावजूद यह सब सुनना बहुत टॉर्चर होता है। पर एनआरसी एक उम्मीद की किरण है जो हमें हमारी पहचान वापस दिला सकती है। गांव के कुछ लोगों के पास 1951 के पुश्तैनी प्रमाण पत्र थे और कुछ के नाम तो 1966 में बनी वोटर लिस्ट में थे। उसके बावजूद उनके नाम एनआरसी में शामिल नहीं हैं। मैं एनआरसी का समर्थन करता हूं, पर अथॉरिटी से अपील है कि इस बार लिस्ट बनाने में कोई गलती न हो। क्योंकि एक गलती से उनकी असली पहचान खत्म हो जाएगी। सोनहाट बॉर्डर मार्केट का 2014 में असम के सीएम तरुण गोगोई ने उद्घाटन किया था। यहां बांग्लादेशी लोग बिजनेस करने आते हैं।
छोटी सी चूक पहुंचा सकती है डिटेंयान में
बरभंगी गांव के 55 वर्षीय सहर अली कहते हैं कि अधिकारियों की छोटी की चूक से वे डिटेंशन सेंटर में भेजे जा सकते हैं। इसी तरह तीन तरफ से बांग्लादेश से घिरे गांव केदार पार्ट-2 के फिलॉसफी प्रोफेसर अमीनुर इस्लाम कहते हैं कि वे गौरीपुर स्थित प्रमथेश बरुआ कॉलेज में पढ़ाते हैं। हमारे गांव में करीब 1000 लोग हैं, पर मेरे समेत कुछ लोगों का ही नाम एनआरसी में नहीं है। हमें उम्मीद है कि एनआरसी से हमारी समस्याएं दूर हो सकती हैं।सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में पंचायत सर्टिफिकेट को एनआरसी डॉक्यूमेंट्स के लिए वैध बताया था। इसके बाद असम में एनआरसी के लिए 48 लाख विवाहित महिलाओं को ग्राम पंचायत द्वारा सर्टिफिकेट जारी किए गए। हालांकि कई ऐसे लोग हैं, जिन्होंने पंचायत सर्टिफिकेट तो जमा किया, पर उनके नाम ड्रॉफ्ट में नहीं आए हैं। संगठनों ने कागजों की जांच सावधानी से करने की अपील की है।
बन जाएगा एक आैर राज्य
बता दें कि असम में 40 लाख लोगों के नाम एनआरसी के फाइनल ड्राफ्ट में नहीं हैं। ऐसे लोग 10 अगस्त से एनआरसी केंद्रों से यह जान सकेंगे कि उनका नाम लिस्ट में क्यों नहीं है। गुरुवार से वे एनआरसी वेबसाइट से फॉर्म डाउनलोड कर सकेंगे। 30 अगस्त से 28 सितंबर तक क्लेम, आपत्ति और सुधार से संबंधित फार्म और कागजात जमा कर सकेंगे। नॉर्थ-ईस्ट के 7 सिस्टर स्टेट का क्षेत्रफल 2.55 लाख वर्ग किमी है। आबादी 4.50 करोड़ है, यह देश की अाबादी का 3.7% है। इसमें से असम की आबादी अकेले 3.29 करोड़ है, मेघालय की 26 लाख, त्रिपुरा की 36 लाख, नगालैंड की 22 लाख, अरुणाचल 12 लाख आैर मिजोरम 11 लाख हैं। एेसे में बता दें कि अन्य छह राज्यों में से किसी की भी आबादी 40 लाख से ज्यादा नहीं है। तो इन लोगों को बसाने के लिए एक इगल राज्य बननाा पड़ेगा।
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