छत्तीसगढ़ में CRPF कमांडो राजेश्वर सिंह को नक्सलियों ने आज छोड़ दिया है। यह खबर सबको पता चल चुकी है लेकिन यह काम ऐसे ही नहीं हुआ। क्योंकि नक्सलियों ने कमांडो को छोड़ने के लिए जान के बदले जान की डील की थी। दरअसल, मुठभेड़ के बाद सुरक्षाबलों ने एक आदिवासी को अपने कब्जे में ले लिया था। मध्यस्थों के जरिये उसे पहले नक्सलियों के हवाले किया गया, तभी राकेश्वर सिंह की सुरक्षित रिहाई संभव हो पाई।

नक्सलियों से बातचीत के लिए गई टीम में शामिल पत्रकारों ने बताया कि सुरक्षाबलों ने कुंजम सुक्का नाम के आदिवासी को अपने कब्जे में लिया हुआ था। नक्सलियों ने सरकार से मांग रखी थी कि निष्पक्ष मध्यस्थों के साथ कुंजम सुक्का को भेजें तो वे जवान को छोड़ देंगे। नक्सलियों से बातचीत के लिए गए पत्रकारों ने बताया कि जिस जगह पर राकेश्वर सिंह को छोड़ा गया, वहां 20 गांवों के दो हजार से ज्यादा लोग जमा थे। नक्सली ग्रामीणों के साथ पत्रकारों और मध्यस्थों पर कड़ी निगरानी रख रहे थे। मध्यस्थ जब वहां पहुंचे तो जवान को उनके सामने नहीं लाया गया। नक्सलियों ने पहले माहौल को भांपा। आश्वस्त होने के बाद उन्होंने जंगल की तरफ इशारा किया। इसके बाद 35 से 40 हथियारबंद नक्सलियों के साथ राकेश्वर लोगों के बीच आए।

जवान को लाने के बाद नक्सलियों ने पत्रकारों को मोबाइल का कैमरा ऑन नहीं करने की सख्त हिदायत दी। उन्होंने पूरे इलाके को घेर रखा था। कुछ हथियारबंद नक्सली जवान को घेर कर खड़े थे। कुछ अन्य नक्सली मध्यस्थता टीम के सदस्यों की निगरानी कर रही थी। इस दौरान नक्सलियों की कमान एक महिला नक्सली के हाथों में थी। इसी महिला नक्सली ने मध्यस्थों को आश्वस्त किया कि रास्ते में उन्हें कोई नुकसान नहीं पहुंचाया जाएगा। जब जवान को छोड़ा जाने लगा, तभी नक्सलियों ने पत्रकारों को वीडियो बनाने की अनुमति दी।

बीजापुर के एसपी ने बताया कि मध्यस्थों की टीम और पत्रकार सुबह 5 बजे बीजापुर से निकले थे। नक्सलियों ने उन्हें बीजापुर जिला मुख्यालय से करीब 80 किलोमीटर दूर जोनागुड़ा आने के लिए कहा था। उबड़-खाबड़ रास्तों से होते टीम दोपहर में जोनागुड़ा पहुंची। यहां पहुंचने के बाद उन्हें जंगल के अंदर करीब 15 किलोमीटर ले जाया गया। शाम के करीब 5 बजे टीम राकेश्वर को लेकर तर्रेम थाना पहुंची। इसके बाद उन्हें सुरक्षाबलों के हवाले किया गया। इससे पहले मध्यस्थों ने कुंजम सुक्का को नक्सलियों के हवाले किया।