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दुनिया के अमीर देश एक व्यक्ति के कोरोना वायरस की 5-5 डोज खरीद रहे हैं। अमेरिका की दो प्रमुख फार्मा कंपनियों की ओर से कोविड-19 वैक्सीन्स के ट्रायल टेस्टिंग के उत्साहजनक नतीजे जारी किए जाने के साथ विकासशील दुनिया के सामने चुनौती है कि अपनी घनी आबादी के लिए टीकाकरण कार्यक्रम की रूपरेखा बनाए। दबाव इसलिए भी है क्योंकि अमीर देशों की ओर से शीर्ष वैक्सीन का बड़ी मात्रा में स्टोरेज किया जा सकता है।
मॉडर्ना ने घोषणा की कि उसका वैक्सीन कैंडिडेट लगभग 95 प्रतिशत असरदार है, वहीं फाइजर ने बायोएनटेक के साथ विकसित अपने कैंडीडेट के ट्रायल्स में 90 फीसदी प्रभावी रहने का ऐलान किया है। अभी कोविड-19 महामारी दुनिया में 5.3 करोड़ लोगों को संक्रमित कर चुकी है, दस लाख से अधिक लोगों की जान जा चुकी है।
दोनों फार्मा कंपनियों ने अपने नतीजे Peer-Reviewed Journals (समकक्ष समीक्षा वाले जर्नल्स) में नहीं बल्कि प्रेस बयानों के जरिए जारी किएं हालांकि इन घोषणाओं को अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने हाथों-हाथ लिया है।
अमेरिका के वायरस एक्सपर्ट डॉ एंथोनी फॉसी ने कहा कि अब हमारे पास दो वैक्सीन्स हैं जो वास्तव में काफी प्रभावी हैं। इसलिए मुझे लगता है कि यह असल में उस दिशा में एक मजबूत कदम है जहां हम इस प्रकोप पर नियंत्रण पाना चाहते हैं।
मॉडर्ना और फाइजर दोनों ने अपनी वैक्सीन्स को डिजाइन करने में इनोवेटिव टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया। लंदन के इंपीरियल कॉलेज में एक शोध सहयोगी ज़ोल्टन किस ने बताया, "तो इस तकनीक में RNA बनाना शामिल है, जो ऐसा मॉलीक्यूल है जो शरीर की कोशिकाओं को एंटीजन के निर्माण की जानकारी प्रदान करता है।
आम आदमी की भाषा में, इस कंसेप्ट का अर्थ है शरीर में कोरोनोवायरस के जेनेटिक कोड के हिस्से को इंजेक्ट करना है, जो कि इम्युन सिस्टम को हमला करने के लिए प्रशिक्षित करता है, जिससे असल वायरस बचने की कोशिश करता है।
लेकिन एक फैक्टर है जो मॉडर्ना और फाइजर की वैक्सीन्स के भविष्य में बंटवारे को जटिल बना सकता है, और वो है उनका स्टोरेज और व्यापक उपलब्धता। खास तौर पर गर्म जलवायु वाले कम आमदनी वाले क्षेत्रों में। दोनों वैक्सीन्स को कम तापमान की आवश्यकता होती है - मॉडर्ना के लिए माइनस 20 सेल्सियस और फाइज़र के लिए माइनस 75 सेल्सियस तक का अल्ट्रा-कोल्ड स्टोरेज।
भारत में स्वास्थ्य विशेषज्ञ विशेष तौर पर फाइजर की वैक्सीन की व्यावहारिकता को मुश्किल बताते हैं। एम्स के निदेशक रणदीप गुलेरिया ने कहा, "फाइजर वैक्सीन को -70 डिग्री सेल्सियस पर रखना पड़ता है, जो भारत जैसे विकासशील देशों के लिए एक चुनौती है, जहां हमें विशेषकर ग्रामीण मिशनों में कोल्ड चेन बनाए रखने में मुश्किलें आएंगी।
गुलेरिया ने हालांकि इसे वैक्सीन अनुसंधान के लिए उत्साहजनक घटनाक्रम बताया.
बता दें कि धनी देश पूरी दुनिया की सिर्फ 13 फीसदी नुमाइंदगी करते हैं और वो अभी से ही विकास के विभिन्न चरणों वाली वैक्सीन्स की प्रस्तावित आपूर्ति का आधे से अधिक हिस्सा अपने लिए सुनिश्चित कर चुके हैं।
उन देशों में से कुछ ने प्रत्येक नागरिक के लिए पांच खुराकें बुक की हैं, जबकि आवश्यकता केवल दो खुराक की होती है। यह एक ऐसा कदम है जो विकासशील दुनिया के लिए आपूर्ति संकट पैदा करने का खतरा दिखाता है।
मॉर्डना के सीईओ स्टीफेन बांसेल ने कहा कि अमेरिकी सरकार के साथ जो पहला समझौता हुआ था, वह 100 मिलियन खुराक के ऑर्डर के लिए था। इसलिए, हम अनुमान लगाते हैं कि साल खत्म होने से पहले उन 100 मिलियन में से 20 मिलियन तक की हम शिपिंग कर सकेंगे।
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