मेघालय के विधानसभा चुनाव के नतीजों से स्पष्ट है कि यहां किसी भी एक पार्टी को बहुमत नहीं मिलने जा रहा है। राज्य में त्रिशंकु विधानसभा के हालात बने हैं। ऐसे में अभी से यहां सियासी उठापटक शुरू हो गई है। भाजपा,कांग्रेस और एनपीपी के नेताओं ने रणनीति बनानी शुरू कर दी है। कांग्रेस के अहम रणनीतिकार और सोनिया गांधी के भरोसमंद अहमद पटेल दो अन्य बड़े नेताओं के साथ मेघालय के लिए रवाना हो चुके हैं।
 गौरतलब है कि मेघालय में पिछले 9 साल से कांग्रेस की सरकार है। ऐसे में इस किले को बचाने के लिए कांग्रेस हरसंभव जतन कर रही है। अगर मेघालय में कांग्रेस को पूर्ण बहुमत नहीं मिला और वह अन्य पार्टियों से ज्यादा सीटें जीत भी गई तो भी उसके लिए सरकार बनाना आसान नहीं होगा। आपको बता दें कि मणिपुर में कांग्रेस चोट खा चुकी है। वहां कांग्रेस सबसे ज्यादा सीटें जीतकर भी सरकार नहीं बना पाई थी।
मणिपुर के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 28 सीटें जीतकर सबसे बड़े दल के रूप में उभरी थी। भाजपा को 21 सीटें मिली थी। इसके बावजूद भाजपा ने एन.बीरेन सिंह के नेतृत्व में गठबंधन की सरकार बना ली। भाजपा ने एनपीपी और अन्य दलों से समर्थन लेकर  सरकार बनाई थी। आपको बता दें कि एनपीपी एनडीए का घटक दल है। वह मणिपुर में भाजपा के साथ सरकार भी चला रही है।
हालांकि मेघालय में भाजपा और एनपीपी ने अलग अलग चुनाव लड़ा। भाजपा ने 47 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे। एनपीपी ने 52 सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं। एनपीपी का गठन पूर्व लोकसभा अध्यक्ष (दिवंगत) पी.ए.संगमा ने किया था। फिलहाल पार्टी का नेतृत्व उनके बेटे कोनराड संगमा के हाथों में है, जिन्होंने विधानसभा चुनाव नहीं लड़ा है। कोनराड संगमा फिलहाल तुरा से लोकसभा सांसद हैं। वर्ष 2016 में तुरा लोकसभा सीट पर हुए उप चुनाव में एनपीपी ने राज्य के मुख्यमंत्री मुकुल संगमा को तगड़ा झटका दिया था। उप चुनाव में कोनराड संगमा ने सीएम मुकुल संगमा की पत्नी को बड़े अंतर से हरा दिया था।