नई दिल्ली: जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक के 2019 के पुलवामा हमले को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार पर लगाए गए आरोपों ने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है। 

मलिक ने द वायर के साथ एक साक्षात्कार में दावा किया कि 2019 के पुलवामा आतंकवादी हमले जिसमें 40 सैनिक मारे गए थे को सरकार की लापरवाही और अक्षमता के लिए नहीं टाला जा सकता था।

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मलिक ने खुलासा किया कि तत्कालीन राजनाथ सिंह के अधीन केंद्रीय रक्षा मंत्रालय ने सीआरपीएफ जवानों को जम्मू से श्रीनगर ले जाने के लिए पांच विमान आवंटित करने की अनुमति देने से इनकार कर दिया था इस कदम से सैनिकों की जान बचाई जा सकती थी।

उन्होंने आगे आरोप लगाया कि पीएम मोदी और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने उन्हें पुलवामा हमले में खुफिया विफलताओं या सरकार की अक्षमता को प्रचारित नहीं करने के लिए कहा था।

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कांग्रेस नेताओं जयराम रमेश, पवन खेड़ा और सुप्रिया श्रीनेत ने मांग की कि मोदी को इस मुद्दे पर अपनी चुप्पी तोड़नी चाहिए।  जबकि रमेश ने आरोप लगाया कि मोदी सरकार का सिद्धांत न्यूनतम शास, अधिकतम चुप्पी है।

इस बीच छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल ने कहा कि सरकार को मलिक के दावों का जवाब देना चाहिए।

मलिक जिन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान अनुच्छेद 370 के विघटन की देखरेख की ने कहा कि बाद में उन्हें धमकी दी गई कि अगर उन्होंने इस विषय पर बात की तो उनका बहिष्कार कर दिया जाएगा।

जम्मू-कश्मीर से मेघालय के राज्यपाल के रूप में स्थानांतरित किए जाने के बाद वह केंद्र के आलोचक बन गए और सीबीआई ने उनके इस दावे की जांच शुरू कर दी कि उन्हें दो फाइलों को मंजूरी देने के लिए रिश्वत की पेशकश की गई थी। उन्होंने राज्यपाल के रूप में सेवा करते हुए पीएम से कृषि प्रदर्शनकारियों की मांगों को स्वीकार करने के लिए कहा था।

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यह पहली बार है कि मलिक जिनका राज्यपाल के रूप में कार्यकाल 3 अक्टूबर, 2022 को समाप्त हो रहा था ने फरवरी 2019 में हुए पुलवामा हमले के संबंध में इस तरह के दावे किए हैं।

मलिक के आरोपों का जवाब देने के लिए कांग्रेस पार्टी ने पीएम पर निशाना साधा है। इस विवाद ने सरकार द्वारा पुलवामा हमले से निपटने और उसके बाद की स्थिति को लेकर चिंताएं बढ़ा दी हैं।