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असम (Assam) भारत के उन राज्यों में है जहां जलवायु परिवर्तन (Climate change) के कारण लोगों की जिंदगियां बर्बाद हो चुकी हैं. हजारों लोग बार-बार उजड़ने को विवश हैं. पिछले एक दशक में हेमराग पेगु आठ बार अपना घर बना चुके हैं. हर बार उन्हें थोड़ा पीछे हटना पड़ता है क्योंकि बारिश के बाद ब्रह्मपुत्र उनके गांव बेसेमोरा को डुबो देती है. आदिवासी मिसिंग कबीले के पेगु पीढ़ियों से ब्रह्मपुत्र के किनारे ही रहते आए हैं. कभी यह कबीला गर्व से कहा करता था कि उन्हें पता है ब्रह्मपुत्र कब कैसे चढ़ेगी और उतरेगी. अब ऐसा नहीं है.
ब्रह्मपुत्र का व्यवहार (behavior of the Brahmaputra) उनके अनुमान से बाहर हो चुका है. 52 साल के दुकानदार पेगु कहते हैं, "हमारे गांव की असली जगह तो अब इतिहास बन चुकी है. इसकी जगह बदलती रहती है. हम हर बार 200-300 मीटर अंदर की ओर चले जाते हैं.” काम की कमी और कुदरती संसाधनों पर निर्भरता के चलते पूरी दुनिया के आदिवासी समुदायों की तरह मिसिंग कबीला भी ग्लोबल वॉर्मिंग प्राकृतिक आपदाओं की सबसे ज्यादा मार झेल रहा है.
जैसे कि उफनती ब्रह्मपुत्र बार-बार बेसेमोरा को उजाड़ देती है. जिसका असर लोगों के जीवनयापन पर भी पड़ता है. वैज्ञानिक पार्था ज्योति दास बताते हैं कि पिछले एक दशक में असम के मौसम में भारी परिवर्तन हुआ है जो बाढ़ का एक बड़ा कारण बन गया है. गुवाहाटी स्थित शोध संस्थान अरण्यक में जलवायु प्रभाग के अध्यक्ष दास कहते हैं, "पहले बारिश का मौसम लंबा होता था और बारिश की मात्रा अनुमानित होती थी. इसका समय भी अनुमानित होता था. अब बारिश बहुत ज्यादा अनिश्चित हो गई. कम अवधि में ज्यादा बारिश होती है जिसका एकाएक बाढ़ आती है.” सबसे ज्यादा खतरा असम को भारत के विज्ञान और तकनीकी मंत्रालयन 2018 में एक अध्ययन प्रकाशित किया था. इसके मुताबिक भारत के हिमालयी राज्यों में जलवायु परिवर्तन के सबसे ज्यादा खतरे असम को ही हैं. ऐसा होने के कई कारण बताए गए थे जिनमें कम प्रतिव्यक्ति आय, फसल बीमा की दरें, सिंचाई-योग्य भूमि की कमी जैसे कारक थे जिनके कारण किसान बारिश पर निर्भर रहते हैं. 2014 से 2021 के बीच असम में बाढ़ के कारण 3.2 करोड़ लोग प्रभावित हुए.
600 लोगों की तो जान ही चली गई. पेगु बताते हैं कि विनाश को कम करने की कोशिशों के तहत बेसेमोरा के निवासोयं ने अपने पारंपरिक बांस के बने घरों के तल ऊंचे किए हैं. नदी के किनारों पर बांस की बाड़ भी लगाई गई है ताकि बाढ़ का असर कम हो. हालांकि बाढ़ की ताकत के आगे ये उपाय कम ही काम करते हैं. पेगु कहते हैं, "जब हम बाढ़ का पानी उतरने पर लौटते हैं तो पाते हैं कि गांव का नक्शा बदल चुका है. नदी के जिन द्वीपों पर हम रहते हैं, उतरते पानी के साथ बह चुके होते हैं.” यह एक नई समस्या का जन्म होता है. बेसेमोरा से एक किलोमीटर दूर है गांव सालमोरा. वहां रहने वाले बिंदू डोले कहते हैं कि बाढ़ का पानी उतरने पर अपनी जमीन पर दावा करना मुश्किल हो जाता है क्योंकि मालिकाना हक का कोई दस्तावेज नहीं है. डोले बताते हैं कि मिसिंग आदिवासी पारंपरिक रूप से खाली पड़ी जमीन पर ही घर बनाते आए हैं. वह कहते हैं, "आबादी बढ़ रही है, नदी के कारण मिट्टी का कटाव बढ़ रहा है. इसलिए जमीन कम होती जा रही है" माजदोलोपा गांव के गोजेन पा कहते हैं कि अनिश्चित मौसम का असर खेती और मछलीपालन पर भी पड़ा है, जो मिसिंग लोगों की आजीविका का अहम साधन हैं.
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