अफगानिस्तान में एकबार फिर से तालिबान का शासन आने के बाद चीन ने नए वर्ल्ड ऑर्डर बनाने की अपनी कोशिशों को और तेज कर दिया है। चीन अब तालिबान जैसे खूंखार आतंकी संगठन को सरकार चलाने के लिए वित्तीय मदद मुहैया करवा रहा है। इस बीच जर्मन डेटाबेस कंपनी स्टेटिका ने दुनियाभर के सबसे बड़े सैन्यकर्मियों वाले देशों की नई सूची भी जारी की है। हर बार की तरह इस बार भी चीन शीर्ष पर बना हुआ है, हालांकि ब्रिटिश सेना को लेकर चिंता जताई गई है।

एक रिपोर्ट के अनुसार चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी दुनिया की सबसे बड़ी विशाल सेना है। 2021 में चीनी सेना में सूचीबद्ध कर्मचारियों की कुल संख्या 2,185,000 है। चीन खुद भी दुनिया में सबसे अधिक सक्रिय सैन्यकर्मियों का दावा करता है। चीनी सैन्य कर्मियों को पांच सैन्य शाखाओं में विभाजित किया गया है, जिनमें ग्राउंड फोर्स, नेवी, एयर फोर्स, रॉकेट फोर्स और स्ट्रैटेजिक सपोर्ट फोर्स शामिल हैं। चीनी सैन्य इकाइयां पांच थिएटर कमांड में बंटी हुई हैं।

सेना के आकार के मामले में चीन के बाद दूसरे स्थान पर भारत काबिज है। भारत के कुल सक्रिय सैन्यकर्मियों की संख्या 1,445,000 है। इसमें भारतीय थल सेना, भारतीय वायु सेना और भारतीय नौसेना के कर्मी शामिल हैं। इसके अलावा भारत के पास दुनिया की सबसे बड़ी पैरामिलिट्री फोर्स है। इसमें सीमा सुरक्षा बल, केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल, केंद्रीय औद्योगिक पुलिस बल, सशस्त्र सीमा बल, इंडो-तिब्बत बॉर्डर पुलिस, एनएसजी, एसपीजी शामिल हैं।

सैन्य संख्या के मामले में अमेरिका का दुनिया में तीसरा स्थान है। अमेरिकी सेना की सभी ब्रांचों में काम करने वाले कुल कर्मचारियों की संख्या 1400000 है। सेना के आकार के मामले में बड़े से छोटे के क्रम में शीर्ष दस देशों में चीन, भारत अमेरिका, उत्तर कोरिया, रूस, पाकिस्तान, दक्षिण कोरिया, ईरान, वियतनाम और सऊदी अरब शामिल हैं। स्टेटिस्टा के विश्लेषण में सबसे नीचे बांग्लादेश है, जिसमें 204,000 सक्रिय सैन्य कर्मियों की सेना है।

भारत के मुकाबले पाकिस्तान के कुल सैन्यकर्मियों की तादद आधी से भी कम है। स्टेटिका के अनुसार, पाकिस्तान के पास दुनिया की छठीं सबसे बड़ी विशाल सेना है। 2021 में पाकिस्तान के कुल सैन्यकर्मियों की संख्या 654000 बताई गई है। इसमें भी भारत की तरह पाक आर्मी, एयरफोर्स और नेवी शामिल है। पाकिस्तानी सेना में लगभग 540000, नेवी में 53000 और एयरफोर्स में 69000 कर्मी शामिल हैं।

चीन इस समय काफी तेजी से अपनी नौसेना के लिए युद्धपोत और पनडुब्बियों का निर्माण कर रहा है। चीन की 62 में से सात पनडुब्बियां परमाणु शक्ति से चलती हैं। ऐसे में पारंपरिक ईंधन के रूप में भी उसे अब ज्यादा खर्च नहीं करना पड़ रहा है। चीन पहले से ही जहाज निर्माण की कला में पारंगत था। साल 2015 में चीनी नौसेना ने अपनी ताकत को अमेरिकी नौसेना के बराबर करने के लिए एक व्यापक अभियान चलाया था। पीएलए को विश्व-स्तरीय फाइटिंग फोर्स में बदलने के काम आज भी उसी तेजी से जारी है। जिनपिंग ने 2015 में शिपयार्ड और प्रौद्योगिकी में निवेश का आदेश दिया था। उन्होंने तब कहा था कि हमें एक शक्तिशाली नौसेना के निर्माण की जरुरत जो आज महसूस हो रही है, वैसा पहले कभी नहीं हुआ था। जाहिर है कि सुप्रीम कमांडर का आदेश पाने के बाद से ही चीनी नौसेना ने पिछले 5-6 साल में अपनी ताकत को कई गुना बढ़ा लिया है। ऐसे में यह न केवल अमेरिका के लिए खतरे की बात है, बल्कि इस क्षेत्र में शांति और कानून का पालन करने वाले देशों की चिंताएं बढ़ाने वाला मुद्दा भी है। चीन साउथ चाइना सी के बड़े हिस्से पर अपना दावा करता है। इसे लेकर वह वियतनाम, ताइवान, फिलिपींस, मलेशिया, इंडोनेशिया और ब्रुनेई के साथ उलझ भी चुका है।
यूएस ऑफिस ऑफ नेवल इंटेलिजेंस (ONI) के अनुसार, 2015 में पीपुल्स लिबरेशन आर्मी नेवी (PLAN) के बेड़े में 255 बैटल फोर्स शिप थे। साल 2020 के आते-आते चीनी नौसेना के पास कुल बैटल फोर्स शिप की तादाद बढ़कर 360 तक पहुंच गई, जो अमेरिकी नौसेना की कुल शिप से 60 ज्यादा है। ओएनआई ने भविष्यवाणी की है कि आज से चार साल बाद यानी 2025 तक चीन के पास कुल 400 बैटल फोर्स शिप होंगी। दुनिया की सबसे बड़ी नौसेना बनाने के बाद भी चीन की भूख शांत नहीं हुई है। वह वर्तमान में भी आधुनिक युद्धपोत, पनडुब्बियां, एयरक्राफ्ट कैरियर, लड़ाकू विमान, एम्फिबियस असाल्ट शिप, बैलिस्टिक न्यूक्लियर अटैक सबमरीन, कोस्ट गार्ड के लिए कई आधुनिक पेट्रोल वेसल और पोलर आइसब्रेकर शिप का निर्माण खतरनाक गति से कर रहा है। ऐसे में संभावना जताई जा रही है कि आने वाले दिनों में चीनी नौसेना की ताकत और ज्यादा बढ़ने वाली है, जिससे इसकी मौजूदगी दुनिया के हर कोने में होगी।
यूएस नेवल वॉर कॉलेज के चाइना मैरीटाइम स्टडीज इंस्टीट्यूट के एक प्रोफेसर एंड्रयू एरिकसन ने एक फरवरी को प्रकाशित किए गए अपने रिसर्च पेपर में चेतावनी देते हुए लिखा था की चीनी नौसेना को चीन के जहाज निर्माण उद्योग से कोई कबाड़ नहीं मिल रहा है, बल्कि काफी तेज गति से परिष्कृत, आधुनिक तकनीकियों से लैस युद्ध करने में सक्षम जहाज मिल रहे हैं। इनमें टाइप 055 डिस्ट्रॉयर भी शामिल है। जो कुछ विश्लेषकों के अनुसार, अमेरिकी टिकोडरोगा-क्लास क्रूजर्स से फायर पावर के मामले में कई गुना अधिक शक्तिशाली है। चीन के एम्फिबियस शिप मिनटों में दुश्मन देशों के समुद्री किनारों पर हजारों की संख्या में चीनी सैनिकों को पहुंचा सकते हैं। ऐसे में यह उन देशों के लिए खतरे की बात है जिनका चीन के साथ समुद्री विवाद है। ताइवान इस समय चीन की नजरों में सबसे बड़ा कांटा है। खुद अमेरिकी सेना के पैसिफिक कमांड के प्रमुख यह अंदेशा जता चुके हैं कि आने वाले 3 से 4 साल में चीन कभी भी ताइवान पर हमला कर सकता है। यह यथास्थिति को परिवर्तित करने का ऐसा प्रयास होगा, जिसे दुनिया चाहकर भी बदल नहीं पाएगी। ऐसे में अंदेशा जताया जा रहा है कि चीन अगर ताइवान पर एक बार कब्जा कर लेगा तो वह किसी भी कीमत पर पीछे नहीं हटेगा।
एक तरफ जहां चीन साल 2025 तक अपनी नौसेना में कुल 400 बैटल फोर्स शिप को शामिल करने की योजना पर काम कर रहा है, वहीं अमेरिकी नौसेना इसे लेकर कोई खास सक्रिय नहीं दिख रही है। अमेरिकी नौसेना के लिए शिपबिल्डिंग का काम देखने वाली एजेंसियों ने भविष्य के लिए 355 बैटल फोर्स शिप के निर्माण का लक्ष्य निर्धारित किया है, हालांकि इसे पूरा करने के लिए उन्होंने कोई निश्चित समयसीमा तय नहीं की है। वर्तमान में अमेरिकी नौसेना के पास कुल 297 400 बैटल फोर्स शिप हैं। अगर नौसैनिकों की बात की जाए तो यहां अमेरिका का पड़ला काफी भारी है। अमेरिकी नौसेना में कुल 330,000 एक्टिव ड्यूटी नौसैनिक हैं, जबकि चीन के पास इनकी तादाद करीब 250,000 के आसपास है।
चीन की तुलना में अमेरिकी नौसेना के पास अधिक क्षमता वाले कई घातक गाइडेड मिसाइल ड्रिस्ट्रॉयर और क्रूजर हैं जो पल भर में भीषण तबाही मचा सकते हैं। ये युद्धपोत अमेरिका के क्रूज मिसाइल लॉन्च करने की क्षमता को कई गुना बढ़ाते हैं। इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर स्ट्रैटेजिक स्टडीज के रक्षा विश्लेषक निक चिल्ड्स के अनुसार, अमेरिका के पास अपने युद्धपोतों से लॉन्च किए जाने वाले 9000 से अधिक वर्टिकल लॉन्च मिसाइल सेल्स मौजूद हैं, जबकि चीन के पास यह क्षमता केवल 1000 के आसपास है। ऐसे में मिसाइलों के मामले में चीन कहीं भी अमेरिका को टक्कर नहीं दे सकता है। इसके अलावा अमेरिकी नौसेना के 50 पनडुब्बियों में सभी के सभी परमाणु शक्ति से संचालित होती हैं। वहीं, चीन के पास कहने को तो 62 पनडुब्बियां हैं, लेकिन उनमें से केवल 7 ही परमाणु शक्ति से चलती हैं। ऐसे में अमेरिका दुनिया के किसी भी कोने में समुद्री ताकत को प्रदर्शित करने के लिए चीन से बिलकुल भी कमतर नहीं है। अमेरिकी परमाणु शक्ति संचालित पनडुब्बियां महीनों तक पानी के अंदर छिपी हुई रह सकती हैं, जबकि चीन की 7 पनडुब्बियों को छोड़कर बाकी की डीजल इलेक्ट्रिक पनडुब्बियों को एक निश्चित समय के बाद सतह पर आना ही पड़ेगा।
विशेषज्ञों के अनुसार, चीन की सबसे बड़ी ताकत उसकी कोस्ट गार्ड और मिलिशिया है। जो आसपास के समुद्रों में बड़ी संख्या में छोटे-छोटे वेसल के जरिए गश्त करती रहती हैं। चीनी सेना के मिलिशिया दूसरे देशों के जलक्षेत्र में घुसकर मछली पकड़ने और समुद्री संसाधनों का दोहन भी करते हैं। अगर इनकी संख्या को भी चीनी नौसेना के साथ जोड़ ले तो यह लगभग दोगुनी हो जाती है। यही कारण है कि कोरोना से प्रभावित अमेरिका बजट और संसाधनों की कमी से अब बुरी तरह से जूझ रहा है। कई विश्लेषकों ने अंदेशा जताया है कि आने वाले दिनों में चीन अपने वार्षिक रक्षा बजट में 6.8% की वृद्धि करेगा। कहा भी जाता है कि यदि आपके पास बहुत सारे जहाज नहीं बन सकते हैं तो आपके पास दुनिया की सबसे बड़ी नौसेना नहीं हो सकती है। चीन खुद को दुनिया के सबसे बड़े वाणिज्यिक शिपबिल्डर होने की क्षमता को भी प्रदर्शित कर रहा है। ऐसे में दुनियाभर के देश अब चीन की शिपबिल्डिंग कंपनियों को बड़े पैमाने पर कांट्रेक्ट भी दे रहे हैं।

इस सूची में ब्रिटिश फोर्सेज की घटती संख्या पर सबसे अधिक चिंता जताई गई है। ब्रिटेन की सेना मिस्र, म्यांमार, इंडोनेशिया, थाईलैंड और तुर्की जैसे अन्य देशों की सेनाओं से भी छोटी बताई जा रही है। पड़ोसी देश फ्रांस के पास भी ब्रिटेन से बड़ी सेना है। फ्रांसीसी सेना में 2021 में 270,000 सक्रिय सैन्यकर्मी हैं। हाउस ऑफ कॉमन्स लाइब्रेरी के आंकड़ों के अनुसार, 1 अप्रैल, 2021 तक यूके सशस्त्र बलों में प्रशिक्षित और अप्रशिक्षित दोनों ही तरह के 159,000 पर्मानेंट कर्मचारी थे।