एक ओर भारत समेत दुनिया और कोरोना वायरस संक्रमण का मुकाबला कर रही है तो वहीं चीन अपनी विस्तारवादी नीति से बाज नहीं आ रहा है।  चीन साल 2015 से भूटान की एक घाटी में सड़कों, इमारतों और सैन्य चौकियों का निर्माण कर रहा है।

  अंतरराष्ट्रीय स्तर पर और ऐतिहासिक रूप से भूटानी माने जाने वाले क्षेत्र में चीन सुरक्षा कर्मियों और सैन्य बुनियादी ढांचे भी लगा रहा है।  चीन अपने इस निर्माण कार्य के दम पर भूटान को भारत के खिलाफ इस्तेमाल करना चाहता है। 

चीन ने साल 2015 में घोषणा की थी कि तिब्बत में तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र के दक्षिण में ग्यालफुग गांव बसाया है।  हालांकि ग्यालफुग भूटान में है और चीनी अधिकारियों ने एक और अंतरराष्ट्रीय सीमा पार कर ली है।  भारत और उसके पड़ोसियों को हिमालयी सीमाओं के दायरे से बाहर करने के लिए चीन लंबे समय से कोशिश कर रहा है। 

माना जा रहा है कि भूटान में निर्माण कार्य चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग द्वारा तिब्बती सीमावर्ती क्षेत्रों को मजबूत करने के लिए एक प्रमुख अभियान का हिस्सा है।  फॉरेन पॉलिसी में छपी रॉबर्ट बार्नेट की एक रिपोर्ट के अनुसार चीन की सरकार चाहती है कि भूटान उसे अपने सैन्य इकाइयों के लिए ऐसी जगह दे जहां से वह भारत का मुकाबला कर सके। 

रॉबर्ट बार्नेट ने लिखा है कि इतना ही नहीं यह निर्माण भूटान के साथ चीन की शर्तों का खुलेआम उल्लंघन भी है।  इसमें भूटानियों द्वारा सीमाओं पर घुसपैठ को लेकर दशकों के विरोध को भी अनदेखा किया गया है। 

रिपोर्ट में दावा किया गया है कि चीन ग्यालफुग के अलावा दो और गांवों पर नजर गड़ाए बैठा है।  एक में निर्माण कार्य अभी भी चल रहा है।  यहां चीन ने 66 मील की सड़कें, हाइड्रोपावर स्टेशन, दो सीसीपी प्रशासनिक केंद्र, कॉन्टैक्ट बेस, सैन्य-पुलिस आउटपोस्ट, सिग्नल टावर, सिक्योरिटी साइट, सैटेलाइट रिसीविंग स्टेशन, सैन्य बेस बना लिया है। चीन इसे टीएआर का क्षेत्र बताता है, लेकिन यह उत्तरी भूटान का हिस्सा है।