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तीन नए कृषि कानूनों ने पूरे देश को हिला कर रख दिया है। एक दिन के लिए भारत बंद हो गया है। मोदी सरकार का बदलाव भारी पड़ गया है। जारी किसानों का आंदोलन अभी तक भी कमजोर पड़ता नजर नहीं आ रहा है। इसी के साथ किसानों और सरकार के बीच फिलहाल कोई बातचीत भी होती नजर नहीं आ रही है। कई दिनों से कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे किसान इन केंद्र द्वारा जारी किए गए कृषि कानूनों को वापस लिए जाने की मांग पर अड़े हुए हैं।
किसानों की इस जिद्द के आगे सरकार कुछ नहीं कर पा रही है लेकिन सरकार कृषि कानूम वापस लेने के बजाए सिर्फ संशोधन करना चाहती है। लेकिन किसानों ने इस बात के इनकार कर दिया है। दिन ब दिन आंदोलन बढ़ता ही जा रहा है। किसान के आंदोलन को खत्म करने के लिए सरकार आक्रामक रणनीति बना रही है। जिसमें सबसे पहले किसान संगठनों के मतभेद उजागर कर रही है और इसी तरह से किसान आंदोलन में घुस आए माओवादी और अलगाववादी ताकतों के बारे में वरिष्ठ मंत्री और बीजेपी नेता लगातार बात कर रहे हैं क्योंकि इस आंदोलन को अलगाववादी ताकतों का समर्थन है।
इसी तरह से सबसे खतरनाक रणनीति जो कि आंदोलनकारी किसान संगठनों में फूट डालो और राज करो की नीति है। क्योंकि बीकेयू भानु गुट से रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने बात की और नोएडा का रास्ता खुलवाया गया था यही कारण था कि संगठनों में आपस में ही मतभेद हो गए।
देश के कृषि मंत्री और अन्य मंत्री आंदोलनकारी किसानों से चर्चा के लिए तैयार है। जिससे जिलों में प्रेस कांफ्रेंस, किसान रैली और चौपालों के माध्यम से कृषि कानूनों के फायदे गिनाएंगी। इसी तरह से सतलुज-यमुना नहर का मुद्दा उठा कर हरियाणा और पंजाब के एकजुट को तोड़ना चाह रही है। नौकरियों के लिए भर्ती का लालच देकर आंदोलन में जुटे युवाओं को दूर करने का प्लान किया जा रहा है। क्योंकि आंदोलन में सबसे ज्यादा युवा वही हैं जिनके पास रोजगार नहीं हैं और किसानों के समर्थन में आगे आए हैं। तो नौकरी से हो सकता है कि युवा किसानों से दूर हो जाए।
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