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भारतीय वैज्ञानिकों ने प्रयागराज में संगम (Prayagraj Sangam) के नीचे एक प्राचीन नदी खोजी है। हेलिकॉप्टर से किए गए इलेक्ट्रोमैग्नेटिक सर्वे में इस बात के पुख्ता सबूत मिले हैं। इसमें सामने आया है कि संगम के नीचे 45 किलोमीटर लंबी प्राचीन नदी है। माना जा रहा है कि यहां पानी का बड़ा खजाना भी हो सकता है यानी संगम में मिल रही गंगा (Ganga) और यमुना (Yamuna) की तलहटी के नीचे जमीन के अंदर एक प्राचीन नदी बह रही है। यह भी माना जा रहा है कि इसका संबंध हिमालय से है। यह संगम में मिलने वाली तीसरी नदी सरस्वती (Saraswati) हो सकती है।
गंगा और यमुना के बीच तलहटी के नीचे जमीन के अंदर यह प्राचीन नदी मिलने से उस मान्यता को बल मिलता है कि संगम में तीन नदियों का मिलन होता है। इसमें गंगा, यमुना और सरस्वती शामिल है लेकिन सरस्वती नदी दिखाई नहीं देती। लेकिन ठीक अब इसी नदी के बहाव क्षेत्र के नीचे एक पुरातन नदी (Paleoriver) का मिलना हैरान करने वाला है। यह स्टडी CSIR-NGRI के वैज्ञानिकों ने मिलकर की है जो एडवांस्ड अर्थ एंड स्पेस साइंस जर्नल में प्रकाशित हुई है।
अब बात ये आती है कि आखिर पुरातन नदी खोजने की जरूरत क्यों पड़ी। असल में दुनियाभर की नदियों से पानी का स्तर गिरता जा रहा है। यही हाल गंगा बेसिन का भी हो र हा है। उसके नीचे कई स्तरों में एक्वीफर सिस्टम (Acquifer System) है, जो बड़े पैमाने पर भारत के उत्तरी मैदानी इलाके में रह रहे लोगों के पानी और कृषि की जरूरतों को पूरा करती है। लेकिन पिछले कुछ दशकों से गंगा नदी के ऊपर भी भारी खपत का दबाव है। धीरे—धीरे पानी का स्तर कम हो रहा है। ऊपर से नहीं नीचे के एक्वीफर सिस्टम का, जिसका असर पर्यावरण, आर्थिक और सेहत संबंधी विषयों पर पड़ रहा है।
यह जानने के लिए कि क्या सच में गंगा और यमुना के दोआब (Doab) इलाके में यह समस्या है। पता चला है कि ये बात तो सही है, इस इलाके में नदियों पर खपत का दबाव काफी ज्यादा है। इसके बाद CSIR-NGRI के वैज्ञानिक सुभाष चंद्रा, वीरेंद्र एम तिवारी, मुलावाडा विद्यासागर, काटुला बी राजू, जॉय चौधरी, के. लोहितकुमार, एरुगु नागइया, सतीश चंद्रापुरी, शकील अहमद और सौरभ आर. कुमार ने गंगा-यमुना दोआब के थ्रीडी मैपिंग करने के लिए इलेक्ट्रोमैग्नेटिक सर्वे करने की ठानी ताकि यह पता चल सके कि दोआब पर पड़ रहे दबाव का असर गंगा और यमुना के एक्वीफर सिस्टम पर किस तरह से पड़ रहा है। क्योंकि सिर्फ यही एक्वीफर सिस्टम ही भूजल को रीचार्ज नहीं करते, बल्कि जमीन के भीतर पुरातन नहरें होती हैं, जो नदियों को रीचार्ज करती रहती हैं।
अब गंगा (Ganga) और यमुना (Yamuna) नदियों के बीच मिली इस प्राचीन नदी की वजह से उस मान्यता को बल मिलता है, जिसमें पौराणिक नदी सरस्वती (Saraswati) का जिक्र आता है। पौराणिक हिंदू मान्यताओं के अनुसार ये तीनों नदियां हिमालय से निकली थीं। गंगा और यमुना तो जमीन की सतह पर बहती हैं, लेकिन सरस्वती अदृश्य हैं। या वैज्ञानिक भाषा में कहें तो सूख चुकी हैं या फिर जमीन के भीतर बह रही हैं। सतह पर तो नहीं दिखती।
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