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इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है कि अमेरिका में गोरों की संख्या लातिन अमेरिकी एशियाई मूल के लोगों से कम हो गई है. अमेरिकी जनसंख्या के ताजा आंकड़ों के मुताबिक श्वेत आबादी की दर 60 फीसदी से कम पर आ गई है। इसको लेकर नस्लीय परंपरा को सर्वोच्च मानने वाले राष्ट्रवादियों में उबाल देखा जा रहा है। इस भारी अंतर का कारण बताया जा रहा है कि मूल अमेरिकी न सिर्फ परिवारिक जीवन देर से शुरू करते हैं, बल्कि उनके बच्चे भी कम होते हैं। हालांकि राष्ट्रवादी सोच वाले अमेरिकी इसके लिए प्रवासी आबादी को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। गौरतलब है कि अमेरिका में लगभग 26 लाख अप्रवासी भारतीय रहते हैं।
जनसंख्या के ताजा आंकड़ों के मुताबिक बीते चार सालों यानी 2010 से 2016 में गोरों की संख्या में 10 लाख से ज्यादा की गिरावट आई है। यही नहीं, यह गिरावट तेजी से बढ़ भी रही है। 2016 से 2017 में तो गोरों की संख्या में 129,000 की कमी आई है। 2019 से 20 के बीच गोरों की संख्या 482,000 तक कम हो गई। इस लिहाज से देखें तो महज एक दशक में गोरों की संख्या में एक मिलियन की कमी आ गई है। जनसंख्यिक विशेषज्ञ मानते हैं कि 2010 का दशक ऐसा पहला दशक बन कर उभरा है, जिसमें गोरों की संख्या 63.8 फीसद से घटकर 59.7 फीसद पर आई गई। यह दर जुलाई 2010 जुलाई 2020 के बीच रही।
जनसांख्यिक विशेषज्ञ गोरों से इतर आबादी को ब्राउनिंग ऑफ अमेरिका करार दे रहे हैं। इसमें लातिन अमेरिकी या हिस्पानिक समूह प्रमुख हैं। इनकी आबादी में बीते दशक के आठ सालों में 10 लाख से अधिक की वृद्धि दर्ज की गई है। फिलहाल इनकी आबादी 10.5 मिलियन है। इसी तरह एशियाई-अमेरिकी आबादी भी बीते दशक के सात सालों में 5 लाख से ज्यादा बढ़ी है, जो अब 4.7 मिलियन हो चुकी है। हालांकि अफ्रीकी-अमेरिकियों की आबादी में ज्यादा इजाफा नहीं देखा गया है। बीते दशक के आठ सालों में इनकी आबादी महज 3 लाख ही बढ़ी है।
लातिन अश्वेत आबादी की बढ़त के लिए प्राकृतिक विकास को जिम्मेदार माना गया है। एशियाई-अमेरिकी अकेला ऐसा समूह जिसकी आबादी में प्रवासी लोगों की संख्या से वृद्धि हुई है। पहले इनकी संख्या 1.2 मिलियन हुआ करती थी, जो अब 3.3 मिलियन हो चुकी है। गौरतलब बात यह है कि गोरों की तुलना में लातिन एशियाई मूल के लोगों की आबादी में बढ़ोत्तरी डोनाल्ड ट्रंप के काल में हुई है। यह वह दौर था जब आव्रजन को लेकर काफी चर्चा चली।
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