दक्षिणी राज्य केरल दोहरी मार झेल रहा है। कोरोना वायरस के कहर के बाद अब बाढ़ के साथ साथ जीका वायरस का कहर झेल रहा है। इस वायरस की दस्तक के बाद केरल सरकार चौकन्नी हो गई है। जीका वायरस कुछ साल पहले अफ्रीका में फैला था। इसका लाइलाज होने और इसका टीका अभी तक विकसित नहीं हो पाया लेकिन यह कोविड-19 की तरह जानलेवा भी नहीं है. फिर भी पहले  से ही कोविड-19 महामारी से जूझ रहे देश में इसको लेकर चिंचित होना स्वाभाविक है।
क्या जीका वायरस

जीका वायरस के संक्रमण का असर डेंगू के बुखार, पीला ज्वर, वेस्ट नाइल वायरस के बुखार की तरह ही होता है। यह संक्रमण एईडीज इजिप्टाय मच्छर के काटने से होता है। इसती प्रजाति से डेंगू का वायरस भी फैलता है। यह सक्रमण प्रमुख रूप इस मच्छर के काटने से ही फैलता है, लेकिन यह गर्भवती मां से बच्चे में भी आ सकता है। वायरस का जोखिम सबसे ज्यादा गर्भवती महिलाओं को होता है। इसके अलावा असुरक्षित यौन संबंधों से भी यह संक्रमण फैल सकता है। संक्रमण होने पर जीका वायरस संक्रमित व्यक्ति के खून में अमूमन एक सप्ताह तक रहता है।



इतना पुराना है जीका वायरस


बेशक जीका वायरस का कोई इलाज नहीं निकला है. कई दशक से दुनिया में मौजूद यह वायरस सबसे पहले 1947 में यूगांडा में पाया गया था। इसके बाद साल 2015 में ही मध्य और दक्षिणी अमेरिका में बड़ी संख्या में इसका संक्रमण पाया गया था। लेकिन इसका सबसे ज्यादा प्रभाव गर्भवती महिलाओं और उनके पैदा होने वाले शिशुओं में देखा गया। यह कुछ मामलों ममें गगुईलाइन बैरे सिंड्रोम से पीड़ित कर सकता है, जो इंसान के नर्वस सिस्टम को कमजोर करने वाली आसमान्य बीमारी है जिसमें हमारे शरीर के प्रतिरक्षा प्रणाली खुद की ही तंत्रिका कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाने लगते हैं।