
शहर के चूनगरान मोहल्ले में दुर्लभ स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी टाइप-1 से पीड़ित 7 माह की मासूम बच्ची नूर फातिमा का मंगलवार को निधन हो गया। बेटी को बचाने के लिए जन सहयोग से 40 लाख रुपए की राशि एकत्रित की गई थी।
नूर के इलाज के लिए सहयोग करने वाले लोगों को उसकी मौत (Demise) से बड़ा झटका लगा है। इस मासूम को बचाने के लिए 16 करोड़ रुपये की लागत वाला एक इंजेक्शन लगाया जाना था। इसे संयुक्त राज्य अमेरिका से आयात किया जाना था।
सामान्य परिवार से आने वाले नूर फातिमा के पिता जिशान के लिए इतनी बड़ी राशि जुटाना संभव नहीं था। ऐसे में उनके परिजनों और मित्रों ने जनसहयोग से रुपये जुटाने का सिलसिला शुरू किया था।
इसके तहत 40 लाख रुपए एकत्र भी हो गए, लेकिन यह राशि 16 करोड़ रुपए की जरूरत को देखते हुए बेहद कम थी। ऐसे में नूर को समय पर यह आवश्यक इंजेक्शन न मिलने की वजह से उसकी तबीयत बिगड़ती चली गई। मंगलवार को अस्पताल में डॉक्टर्स ने उसे मृत घोषित कर दिया।
क्या है ये बीमारी
स्पाइनल मस्कुलर एट्रॉफी टाइप-1 एक दुर्लभ बीमारी है। इस बीमारी से पीड़ित बच्चों की मांसपेशियां कमजोर होती हैं। स्तनपान करने में और सांस लेने में दिक्कत होती है। बच्चा पूरी तरह से निष्क्रिय सा हो जाता है। भारत में इसका अभी तक कोई इलाज नहीं उपलब्ध नहीं बताया रहा है। विदेशों में इलाज इतना महंगा है कि हर कोई अफोर्ड नहीं कर पाता. इसलिए डेढ़-दो साल में ही इस बीमारी के पीड़ित बच्चों की मौत हो जाती है।
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