यंगून/इंफाल। लोकतंत्र समर्थकों को बंदूक के बल पर कुचल रही म्‍यांमार की सेना (Myanmar army) ने भारत (India) की पीठ में भी छुरा घोपा है। म्‍यांमार की सेना ने पूर्वोत्‍तर भारत (north east india) में सक्रिय विद्रोहियों को अपने इलाके में कैंप लगाने की अनुमति दे दी है। ये विद्रोही म्‍यांमार में ट्रेनिंग ले रहे हैं और चीनी हथियारों की मदद से मणिपुर तथा नगालैंड में खूनी हमलों को अंजाम दे रहे हैं। पूर्वोत्‍तर भारत में सक्रिय उग्रवादी संगठन इसके बदले में म्‍यांमार में सेना की मदद के लिए लोकतंत्र समर्थक पीपुल्‍स डिफेंस फोर्सेस के लोगों पर हमले कर रहे हैं।

भारत ने म्‍यांमार की सेना को जंगी हथियार से लेकर मानवीय मदद तक दी है। इस अहसान के बाद भी म्‍यांमार की सेना पूर्वोत्‍तर के उग्रवादियों की मदद कर रही है। एशिया टाइम्‍स की रिपोर्ट के मुताबिक उग्रवादी गुटों ने जब 13 नवंबर को मणिपुर में खूनी हमला किया तब म्‍यांमार के साथ भारत के कभी नरम और कभी गरम रहने वाले रिश्‍ते एक बार‍ फिर से उबल पड़े। इस हमले में असम राइफल्‍स के एक अधिकारी समेत 7 लोगों की मौत हो गई। इसमें अधिकारी की पत्‍नी और 6 साल का बच्‍चा भी शामिल है।

असम राइफल्‍स पर यह हमला मणिपुर के पीपुल्‍स लिबरेशन आर्मी और मणिपुर नगा पीपुल्‍स फ्रंट के उग्रवादियों ने मिलकर अंजाम दिया था। इन दोनों ही गुटों के कैंप पड़ोसी म्‍यांमार की सीमा के अंदर मौजूद हैं और खबरें इस बात की ओर इशारा कर रही हैं कि उग्रवादी हमला करने के बाद म्‍यांमार की सीमा में भाग गए। भारत की म्‍यांमार से लगती 1600 किमी लंबी सीमा है। यह सीमा कई पहाड़ी और दुर्गम इलाकों से भरी हुई है। इससे उग्रवादियों को भारत में हमला करके म्‍यांमार भाग जाना आसान होता है।

नगा, मणिपुरी और असम के उग्रवादी पिछले कई वर्षों से म्‍यांमार के सगाइंग इलाके में अपना अड्डा बनाए हुए हैं। यही से वे भारत में हमले करके फिर वापस भाग जाते हैं। ये कैंप भारत और म्‍यांमार के बीच लंबे समय से विवाद का विषय रहे हैं लेकिन जनवरी 2019 में म्‍यांमार की सेना ने जब विद्रोहियों के कैंप पर कार्रवाई की तो माना गया कि उसकी नीतियों में बदलाव आया है। म्‍यांमार की सेना ने नगा, मणिपुरी और असम के विद्रोहियों की स्‍वयंभू राजधानी तागा में सफाई अभियान चलाया था। इससे म्‍यांमार और भारत के बीच संबंधों में सुधार आया था।

इसी संबंधों और हथियारों की डील के बाद भारत ने म्‍यांमार में 1 फरवरी को हुए सैन्‍य विद्रोह का सार्वजनिक रूप से विरोध नहीं किया। अब यह पता चल रहा है कि म्‍यांमार की सेना न केवल एक बार फिर से पूर्वोत्‍तर के उग्रवादियों को शरण दे रही है, बल्कि उनका इस्‍तेमाल लोकतंत्र समर्थक पीपुल्‍स डिफेंस फोर्सेस को कुचलने के लिए कर रही है। ये लोकतंत्र समर्थक देशभर में म्‍यांमार की सेना से लोहा ले रहे हैं। मणिपुर के उग्रवादी जो बहुसंख्‍यक मेइतेई समुदाय से हैं, वे सगाइंग इलाके में लोकतंत्र समर्थकों पर हमले कर रहे हैं। यह इलाका भारत के मणिपुर राज्‍य के मोरेह इलाके ठीक दूसरी तरफ है। इसके बदले में उन्‍हें म्‍यांमार में रहने की अनुमति दी जा रही है।