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विधानसभा चुनावों से पहले जीत का दावा कर रही भाजपा को मेघालय में करारी हार का सामना करना पड़ा। भाजपा ने चुनाव से ठीक पहले पुराने साथी एनपीपी के साथ गठबंधन तोड़ दिया, जो कि उसके लिए आत्मघाती फैसला साबित हुआ। पीएम मोदी ने भी शिलॉन्ग में बड़ी रैली कि, लेकिन नतीजों को देखकर लगता है कि इस बार मोदी मैजिक नहीं चल पाया है।
मेघालय में भाजपा के पास मुख्यमंत्री पद का कोर्ई चेहरा नहीं था, जहां पार्टी प्रधानमंत्री मोदी के नाम पर चुनाव लड़ रही थी। पार्टी के लिए कहीं न कहीं एक सीएम चेहरा होने का अलग ही फर्क पड़ता है। मेघालय में चुनाव की कमान असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने संभाली थी, लेकिन त्रिपुरा और नागालैंड की तरह मुख्यमंत्री चेहरा ना होना पार्टी के लिए भारी पड़ गया।
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उधर मेघालय में 70 फीसदी ईसाई आबादी है। ऐसे में विपक्ष ने भाजपा को ईसाई विरोधी बता हवा बदल दी। पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा को 2 सीटें मिली थी और उसने एनपीपी को अपना समर्थन दिया था, लेकिन बीते पांच साल में पार्टी ने महसूस किया कि उसने राज्य में अपनी पकड़ बना ली है। ऐसे में बीजेपी ने एनपीपी के साथ गठबंधन तोड़ा और राज्य की सभी सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए। यानी राज्य में किसी मजबूत दल का साथ ना होना भाजपा के लिए भारी पड़ा। साल 2018 के मेघालय विधानसभा चुनावी नतीजों के बाद बीजेपी ने सूझबूझ का परिचय देते हुए एनपीपी और यूडीपीके साथ नाता जोड़ कांग्रेस को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखाया था। जिसके बाद इस बार विधानसभा चुनाव आते ही बीजेपी ने एनपीपी के साथ नाता तोड़ लिया। जो कि बीजेपी के लिए काफी हद तक नुकसानदायक साबित हुआ।
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