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शिलांग: मेघालय में अपनी बड़ी जीत का दावा करने वाली भाजपा को विधानसभा चुनाव में करारी हार मिली है। इससे पहले पार्टी ने अपने दम पर सरकार बनाने का दावा किया था। लेकिन अब चुनाव के नतीजे साफ बता रहे हैं कि मेघालय में मोदी मैजिक नहीं चल पाया। बीजेपी ने चुनाव से ठीक पहले अपने पुराने साथी एनपीपी से अलग होकर चुनाव लड़ने का ऐलान किया था। हालांकि, उसका ये विचार फ्लॉप हो गया। आपको बता दें कि पीएम मोदी ने भी मेघालय चुनाव से पहले शिलांग में बड़ी रैली की थी। प्रधानमंत्री पीएम मोदी ने इस रैली के दौरान कांग्रेस और विपक्षी दलों पर हमला बोलते हुए कहा था कि देश से परिवारवाद जाना चाहिए। एनपीपी से गठबंधन तोड़ने के बाद भाजपा ने मेघालय की सभी 60 सीटों पर अपने प्रत्याशी मैदान में उतारे थे। ऐसे में जानते हैं कि पार्टी को मेघालय में हार का सामना क्यों करना पड़ा।
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बीजेपी नहीं समझ पाई जनता का मूड
मेघालय में भाजपा की करारी हार का एक कारण यह रहा कि यहां उसें किसी मजबूत दल का साथ नहीं मिला। पिछले चुनाव में सिर्फ 2 सीटें पाने वाली बीजेपी सरकार में शामिल होने के बाद यह महसूस कर रही थी कि वह 5 सालों के अंदर राज्य में अपनी पैठ बना चुकी है। लेकिन उसकी ये समझ सही साबित नहीं हो पायी।
सीएम चेहरा नहीं
आपको बता दें कि मेघालय में भाजपा की हार का एक कारण यह भी रहा कि यहां पर उसके पास त्रिपुरा और नगालैंड की तरह मुख्यमंत्री का चेहरा नहीं था। हालांकि, भाजपा की तरफ से पूर्वोत्तर राज्यों की जिम्मेदारी काफी हद तक असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा के हाथों में रही। इस पार्टी के लिए कहीं न कहीं सीएम चेहरा ना होना भी हार का एक कारण रहा। दूसरी तरफ विपक्ष भी इस बात को लेकर लगातार बीजेपी पर हावी रहा कि वो ईसाई विरोधी है, जबकि यहां पर 70 फीसदी जनता ईसाई है। हालांकि, भाजपा की तरफ से पोप और मोदी की शानदार मुलाकात के जरिए इस डैमेज कंट्रोल की कोशिश की गई।
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एनपीपी से तोड़ा अलायंस
भाजपा की मेघालय में हार का तीसरा कारण यह भी भी रहा कि उसने चुनावों से पहले एनपीपी के साथ गठबंधन तोड़ लिया था। पिछले विधानसभा चुनावों में भाजपा ने सूझबूझ से काम लेते हुए एनपीपी और यूडीपीके साथ नाता जोड़कर कांग्रेस को सत्ता से बाहर कर दिया था। लेकिन, इस बार विधानसभा चुनाव आते ही उसने एनपीपी से नाता तोड़ लिया जो उसके लिए काफी हद तक नुकसानदायक साबित हुआ।
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