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असम और मेघालय के बीच सीमा विवाद सुलझने के बाद अब मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा की नजरें अरुणाचल पर टिकीं है। दरअसल असम और अरुणाचल के बीच भी काफी समय से सीमा विवाद चल रहा है, जिसका अभी तक कोई नतीजा नहीं निकला है।
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बता दें कि हाल ही में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की मौजूदगी में असम और मेघालय के मुख्यमंत्रियों ने 12 से 6 बिंदुओं पर समझौता किया था। इसके बाद असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने कहा कि असम-मेघालय मुद्दा बहुत अच्छी तरह से आगे बढ़ा है। अब हम अरुणाचल प्रदेश के साथ अपने सीमा विवाद को सुलझाने की कोशिश कर रहे हैं। हमें उम्मीद है कि 18 अप्रैल को गुवाहाटी में अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू के साथ इस विषय पर चर्चा होगी। हम अपने बीच विवाद के क्षेत्रों को काफी कम करने की कोशिश कर रहे हैं।
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बता दें कि असम अरुणाचल प्रदेश के साथ 804 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करता है। हालांकि शुरू में कोई विवाद नहीं था, लेकिन धीरे-धीरे अतिक्रमण के बढ़ते मामलों के बीच दोनों राज्यों के बीच खींचतान शुरु हो गई। इस मुद्दे पर एक मुकदमा 1989 से सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। पिछले साल प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री दोनों के आग्रह के बाद दोनों राज्यों ने अदालत के बाहर बातचीत के माध्यम से अपने सीमा विवाद को सुलझाने का संकल्प लिया। इस साल जनवरी में दोनों मुख्यमंत्रियों ने मुलाकात की और दशकों पुराने विवाद को सुलझाने के लिए शुरुआती बातचीत शुरू की। दोनों राज्यों के बीच सीमा विवाद 1873 से शुरू होता है जब अंग्रेजों ने असम के उत्तर में मैदानी इलाकों और पहाड़ी इलाकों के बीच एक काल्पनिक सीमा बनाते हुए इनर-लाइन रेगुलेशन शुरू किया था।
असम से अलग हुए इस क्षेत्र को शुरू में नॉर्थ ईस्ट फ्रंटियर ट्रैक्ट्स और बाद में नॉर्थ ईस्ट फ्रंटियर एजेंसी (एनईएफए) कहा गया। यह स्वतंत्रता के बाद असम के प्रशासनिक अधिकार क्षेत्र में था। 1972 में NEFA का नाम बदलकर अरुणाचल प्रदेश कर दिया गया और इस तरह इसे केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दिया गया और यह 1987 में एक पूर्ण राज्य बन गया, लेकिन अपनी वर्तमान सीमाओं को प्राप्त करने से पहले असम के पूर्व मुख्यमंत्री गोपीनाथ बोरदोलोई की अध्यक्षता वाली एक समिति ने लगभग 3650 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को असम में स्थानांतरित कर दिया, जो पहले नेफा के साथ था। ऐसे ये स्थानांतरण दोनों राज्यों के बीच विवाद की जड़ बन गया, क्योंकि अरुणाचल ने इसे मान्यता देने से इनकार कर दिया।
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