मंजिल पर पहुंचने के लिए कई तरह की मुसीबतों का सामना करना पड़ता है। मंजिल के लिए जब जूझते हैं, बार-बार गिर कर खड़े होते हैं तो आत्मविश्वास बढ़ता है। और आत्मविश्वास से सारी दुनिया जीती जा सकती है। मंजिल मिलने के बाद खुशी कई गुना होती है। इसलिए जीत या हार को कोई और तय नहीं करता बल्कि हम खुद ही तय करते हैं। यह निर्भर करता है की आपकी सोच क्या है।

सोच इंसान की सिक्के के दो पहलूओं की तरह होती है। सही और गलत दो पहलू हर चीज के होते हैँ। सोच भी सकारात्मक और नकारात्मक होती है। सकारात्मक सोच आगे की और लेकर जाती और नकारात्मक सोच पीछे की ओर लेकर जाती है। इसी तरह से इंसान को हमेशा सकारात्मक ही रहना चाहिए।  दुनिया आपको कैसे देखती है इसके बारे में कभी मत सोचना। क्योंकि यह महत्वपूर्ण नहीं है।

सोच सिर्फ इसकी रखना की आप खुद को कैसे देखते हैं। दुनिया से मतलब मत रखिए खुद से ज्यादा मतलब रखिए, यह सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है। जीवन में जीत और हार आपकी सोच पर ही निर्भर करती है। इस लिए हार के बारे  में ना सोच कर जीत के लिए सोचिए। मान लो तो हार है और ठान लो तो जीत है , यह पेतरा सबसे बड़ा पेतरा है। तो इसे जीवन में उतार लो और जीत को हासिल कर लों।