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देवाधिदेव भगवान शंकर (Lord shiva) की अर्धांगिनी शिवप्रिया पार्वती (Parwati) तीनों लोकों की सौभाग्यरूपा हैं। दक्ष प्रजापति ने सौभाग्यरस का पान किया था; उसके अंश से एक कन्या का जन्म हुआ। सभी लोकों में उस कन्या का सौन्दर्य अत्यधिक था, इसी से इनका नाम ‘सती’ हुआ।
रूप में अतिशय माधुर्य और लालित्य होने के कारण ये ‘ललिता’, पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने से ‘पार्वती’ व अत्यन्त गौरवर्ण होने से ‘गौरी’ कहलाईं। त्रैलोक्य सुंदरी इस कन्या का विवाह भगवान शंकर के साथ हुआ।
हर सोमवार भगवान शिव की पूजा ही नहीं वरन् शिव की अर्द्धांगिनी माता पार्वती की पूजा भी परम फलदायक होती है। शिववामांगी पार्वती सभी स्त्रियों की स्वामिनी हैं।
संसार में स्त्रियां विभिन्न कामनाओं की पूर्ति के लिए, शीघ्र विवाह के लिए, सुखी दाम्पत्य जीवन के लिए व अमंगलों के नाश के लिए शिवप्रिया की ही शरण ग्रहण करती हैं; क्योंकि उनकी पतिभक्ति की कोई समता नहीं है। दाम्पत्यप्रेम का स्रोत भगवान शिव और पार्वती में ही निहित है।
सीताजी व रुक्मिणीजी ने भी मनचाहा पति प्राप्त करने के लिए गौरीपूजा की थी।
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