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भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को अनंत चतुर्दशी व्रत मनाया जाता है। यह 19 सितंबर को है। अनंत यानी जिसके न आदि का पता है और न ही अंत का। अर्थात वे स्वयं श्री हरि ही हैं। इस चतुर्दशी का व्रत करने से जीवन के सभी दुख दर्द दूर हो जाती है और जीवन में खुशहाली का आगमन होता है। इसका व्रत अगर आप करते हैं जो निम्न कथा जरूर सुने या पढ़े-
कथा-
सुमंत नामक एक वशिष्ठ गोत्री ब्राह्मण थे। उनका विवाह महर्षि भृगु की कन्या दीक्षा से हुआ। इनकी पुत्री का नाम सुशीला था। दीक्षा के असमय निधन के बाद सुमंत ने कर्कशा से विवाह किया। पुत्री का विवाह कौण्डिन्य मुनि से हुआ।
किंतु कर्कशा के क्रोध के चलते सुशीला एकदम साधनहीन हो गई। वह अपने पति के साथ जब एक नदी पर पंहुची, तो उसने कुछ महिलाओं को व्रत करते देखा। महिलाओं ने अनंत चतुर्दशी व्रत की महिमा बताते हुए कहा कि अनंत सूत्र बांधते समय यह मंत्र पढ़ना चाहिए-
‘अनंत संसार महासमुद्रे मग्नं समभ्युद्धर वासुदेव।
अनंतरूपे विनियोजयस्व ह्यनंतसूत्राय नमो नमस्ते॥’
अर्थात- ‘हे वासुदेव! अनंत संसाररूपी महासमुद्र में मैं डूब रही/रहा हूं, आप मेरा उद्धार करें, साथ ही अपने अनंतस्वरूप में मुझे भी आप विनियुक्त कर लें। हे अनंतस्वरूप! आपको
मेरा बार-बार प्रणाम है।’
सुशीला ने ऐसा ही किया, किंतु कौण्डिन्य मुनि ने गुस्से में एक दिन अनंत का डोरा तोड़ दिया और फिर से कष्टों से घिर गए। किंतु क्षमाप्रार्थना करने पर
अनंत देव की उन पर फिर से कृपा हुई।
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